धर्म-अध्यात्म

भारत का ऐसा मंदिर जो पूरे साल रहता है बंद, केवल रक्षाबंधन के ही दिन खुलते हैं वंशी नारायण मंदिर के कपाट

Subhi
11 Aug 2022 4:40 AM GMT
भारत का ऐसा मंदिर जो पूरे साल रहता है बंद, केवल रक्षाबंधन के ही दिन खुलते हैं वंशी नारायण मंदिर के कपाट
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धार्मिक दृष्टिकोण की बात की जाए तो भारत सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। क्योंकि यह एक ऐसा देश है जो विभिन्न तरह के चमत्कारी मंदिरों से घिरा हुआ है। देश के कोने-कोने में रहस्य से भरे हुए मंदिर मौजूद है।

धार्मिक दृष्टिकोण की बात की जाए तो भारत सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। क्योंकि यह एक ऐसा देश है जो विभिन्न तरह के चमत्कारी मंदिरों से घिरा हुआ है। देश के कोने-कोने में रहस्य से भरे हुए मंदिर मौजूद है। कई ऐसे मंदिर है जिनके बारे में शायद ही किसी को पता हो। ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड में स्थित है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह साल में सिर्फ एक बार रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है। जानिए इस मंदिर के बारे में खास बातें।

वंशी नारायण मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित एकल संरचना का 8वीं शताब्दी का मंदिर है। मंदिर उरगाम गांव के अंतिम गांव बंसा से 10 किमी आगे स्थित है। इसलिए, मंदिर के आसपास कोई मानव बस्तियां नहीं हैं। कई लोग इस मंदिर को बंशी नारायण मंदिर के नाम से भी जानते हैं।

वंशी नारायण मंदिर, उत्तराखंड

चमोली जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित वंशीनारायण मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले की उर्गम घाटी में कल्पेश्वर महादेव मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर और देवग्राम से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है ।

यह मंदिर हिमालय पर्वत पर स्थित नंदा देवी पर्वत श्रृंखलाओं और जंगलों से घिरा है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए घने ओक के जंगलों के बीच से होकर जाया जाता है। यह मंदिर भगवान श्री हरी अर्थात नारायण को समर्पित है । ऐसा माना जाता है की यह मंदिर लगभग 6 से 8 वी शताब्दी के आसपास बना होगा ।

रक्षाबंधन को ही खुलते हैं मंदिर के कपाट

इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक इस मंदिर के कपाट खुलते हैं। इसके बाद अगले एक साल के लिए फिर से मंदिर बंद हो जाता है। रक्षाबंधन के दिन मंदिर खुलते ही कुंवारी कन्याओं और विवाहित महिलाएं भगवान वंशीनारायण को राखी बांधने लगती है।

वंशी नारायण से जुड़ी पौराणिक कथा

वंशी नारायण मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। इसके अनुसार, राजा बलि के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण किया था और बलि के अहंकार को नष्ट करके पाताल लोक भेज दिया। जब बलि का अहंकार नष्ट हुआ तब उन्होंने नारायण से प्रार्थना की थी कि वह भी मेरे सामने ही रहे। ऐसे में श्री हरि विष्णु पाताल लोक में बलि के द्वारपाल बन गए थे। लंबे समय तक जब विष्णु जी वापस नहीं लौटे तो मां लक्ष्मी भी पाताल लोक आ गई और बलि की कलाई पर राखी बांधी और प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को पाताल लोक से जाने दें। इसके बाद राजा बलि ने बहन लक्ष्मी की बात मानकर विष्णु जी को वचन से मुक्त कर दिया। कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु पाताल लोक से धरती पर प्रकट हुए थे। तब से रक्षाबंधन के दिन इस जगह को वंशी नारायण के रूप में पूजा जाने लगा।


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