धर्म-अध्यात्म

ऐसा डाकू जो लोगों की अंगुलियां काटकर गले में पहनता था, फिर बन गया संत जानिए आगे

HARRY
4 Jun 2022 6:32 PM GMT
Such a dacoit who used to cut off peoples fingers and wear it around his neck, then became a saint, know further
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डाकू अंगुलिमाल जंगल से गुजरने वाले राहगीरों को मारकर उन्हें लूट लेता और फिर उनकी अंगुलियां काटकर अपने गले में पहनता

डाकू अंगुलिमाल जंगल से गुजरने वाले राहगीरों को मारकर उन्हें लूट लेता और फिर उनकी अंगुलियां काटकर अपने गले में पहनता था। एक बार डाकू अंगुलिमाल का गौतम बुद्ध से सामना हुआ...

ऐसा डाकू जो लोगों की अंगुलियां काटकर गले में पहनता था, फिर बन गया संत

प्राचीन काल में मगध राज्य में एक खूंखार डाकू हुआ करता था। वह जंगल में रहता था और अपने इलाके से गुजरने वाले राहगीरों को मारकर लूट लेता था। उसकी दरिंदगी इतनी ज्यादा थी कि वह राहगीरों को मारकर उनकी अंगुलियां काट देता था, फिर उनकी माला बनाकर पहनता था। इसी वजह से उसे अंगुलिमाल डाकू कहते थे। अंगुलिमाल का इलाके में बहुत खौफ था।

एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ उस राज्य में विहार कर रहे थे। वह एक गांव में पहुंचे और रात्रि विश्राम किया। वहां के लोगों में एक अलग तरह का खौफ था। जब बुद्ध ने उनसे डरने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि हमारे पास के जंगल में अंगुलिमाल नाम का एक खूंखार डाकू रहता है। वह लोगों को बहुत बेरहमी से मार डालता है। यहां और आसपास के गावों के कितने ही लोगों को वह मार चुका है।

बुद्ध ने श्रावकों से कहा कि वह उस खूंखार अंगुलिमाल डाकू से मिलना चाहते हैं। तब लोगों ने बुद्ध को उसके पास जाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि उसके सामने जो भी आता है वो उसे छोड़ता नहीं है। आप क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। मगर बुद्ध ने कहा कि वह उस डाकू से जरूर मिलेंगे।

बुद्ध की यह जिद देखकर उनके शिष्य भी भयभीत हो गए। फिर बुद्ध अकेले ही जंगल की ओर निकल पड़े। अंगुलिमाल की दूर से उनपर नजर पड़ गई। वह भी सोचने लगा कि इस जंगल में 50-100 लोग भी एक साथ आने से डरते हैं और एक संन्यासी अकेला चला आ रहा है, आखिर क्यों?

अंगुलिमाल तुरंत गौतम बुद्ध के पास तेजी से दौड़कर पहुंचने लगा। बुद्ध ने अंगुलिमाल को देख लिया मगर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह अपने कदम बढ़ाकर चलते रहे। यह देखकर अंगुलिमाल रुक गया। अंगुलिमाल का चेहरा बहुत डरावना था। उसने गले में इंसानों की कटी हुई अंगुलियों की माला पहनी हुई थी। उसकी आंखों में वहशीपन झलक रहा था।

मगर बुद्ध के चेहरे पर बिल्कुल भी डर का भाव नहीं था। अंगुलिमाल ने बुद्ध से कहा कि हे संन्यासी! तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता क्या? मैंने न जाने कितने ही लोगों को मौत के घाट उतारा है। मेरे गले में लटकी यह माला इस बात की गवाह है।

बुद्ध ने बड़ी शालीनता से उसका उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि तुझसे भला मैं क्यों डरूं? यह बात सुनकर अंगुलिमाल का क्रोध और बढ़ गया। उसने कहा, 'मैं चाहूं तो अभी तुम्हारी सिर धड़ से अलग कर दूं।' बुद्ध बोले कि मैं तुझ जैसे कायर से नहीं डरता। मैं उससे डरूंगा जो वास्तव में ताकतवर है।

अंगुलिमाल अचरज में पड़ गया कि आखिर ये किस खेत की मिट्टी से बना है। उसने बुद्ध से कहा कि शायद तुम्हें मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है। तभी बुद्ध बोले कि अगर तू वास्तव में ताकतवर है तो जा इस पेड़ की 10 पत्तियां तोड़कर ला। अंगुलिमाल की हंसी फूट पड़ी। वह राक्षसों की तरह जोर-जोर से हंसने लगा और बोला- बस! सिर्फ 10 पत्तियां? अरे पत्तियां तो क्या, मैं पूरा पेड़ ही उखाड़ ले आता हूं। बुद्ध ने कहा कि पूरा पेड़ उखाड़ने की कोई जरूरत नहीं है। सिर्फ उसकी दस पत्तियां तोड़कर लाओ।

अंगुलिमाल तुरंत पेड़ के पास पहुंचा और दस पत्तियां तोड़कर वापस बुद्ध के सामने आ गया। उसके चेहरे पर हंसी अब भी खिल रह थी। अब बुद्ध ने बोला कि जाओ इन पत्तियों को जहां से तोड़ा है वहां वापस जोड़ दो। अंगुलिमाल की हंसी अचानक गायब हो गई। उसने कहा, 'ये कैसे हो सकता है? एक बार टूटने के बाद पत्तियां वापस कैसे पेड़ से जुड़ सकती हैं?

फिर बुद्ध ने अंगुलिमाल से कहा कि उस चीज को तोड़कर कोई ताकतवर नहीं होता, जिसे वापस न जोड़ा जा सके। तू इंसान का सिर धड़ से अलग कर सकता है, लेकिन उसे वापस नहीं जोड़ सकता। असली ताकत तो उसमें होती है जो टूटे हुए को वापस जोड़ दे।

अंगुलिमाल के चेहरे के तोते उड़ चुके थे। बुद्ध की बातें सुनकर वह चुप हो गया था। उसके पास बुद्ध के कथन का कोई जवाब नहीं था। उसे खुद से ग्लानि होने लगी कि वह वास्तव में ताकतवर नहीं है। अगले ही पल अंगुलिमाल गौतम बुद्ध के पैरों में पड़ गया और कहने लगा कि उन्होंने उसकी आंखें खोल दी हैं। अंगुलिमाल ने बुद्ध से उनकी शरण में लेने का आग्रह किया। बुद्ध ने अंगुलिमाल को अपना शिष्य बना दिया और बाद में वह संत बन गया।

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