धर्म-अध्यात्म

शाम में रोजाना तुलसी के सामने खड़े होकर बोलें ये, आर्थिक तंगी से मिलेगा छुटकारा

Subhi
11 Dec 2022 9:51 AM GMT
शाम में रोजाना तुलसी के सामने खड़े होकर बोलें ये, आर्थिक तंगी से मिलेगा छुटकारा
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तुलसी का पौधा न केवल औषधि के रूप में जाना जाता है बल्कि ये घर में सकारात्मक प्रभावों को ला सकता है. ऐसे में आपको बता दें कि यदि तुलसी के सामने खड़े होकर रोजाना ये पाठ किया जाए तो इससे आर्थिक तंगी, नजर दोष, नकारात्मक ऊर्जा आदि को दूर किया जा सकता है. आज का हमारा लेख इसी विषय पर है. आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि तुलसी के पौधे के सामने खड़े होकर कौन-सा पाठ पड़ा जा सकता है. पढ़ते हैं आगे…

तुलसी चालीसा

दोहा

जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।

नमो नमो हरी प्रेयसी श्री वृंदा गुन खानी

श्री हरी शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब।

जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ।।

चौपाई

धन्य धन्य श्री तलसी माता। महिमा अगम सदा श्रुति गाता।।

हरी के प्राणहु से तुम प्यारी। हरीहीं हेतु कीन्हो ताप भारी।।

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो। तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ।।

हे भगवंत कंत मम होहू। दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ।।

सुनी लख्मी तुलसी की बानी। दीन्हो श्राप कध पर आनी ।।

उस अयोग्य वर मांगन हारी। होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ।।

सुनी तुलसी (तुलसी से जुड़े नियम) हीं श्रप्यो तेहिं ठामा । करहु वास तुहू नीचन धामा ।।

दियो वचन हरी तब तत्काला। सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।।

समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा। पुजिहौ आस वचन सत मोरा ।।

तब गोकुल मह गोप सुदामा। तासु भई तुलसी तू बामा ।।

कृष्ण रास लीला के माही। राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ।।

दियो श्राप तुलसिह तत्काला। नर लोकही तुम जन्महु बाला ।।

यो गोप वह दानव राजा। शंख चुड नामक शिर ताजा ।।

तुलसी भई तासु की नारी। परम सती गुण रूप अगारी ।।

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ। कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ।।

वृंदा नाम भयो तुलसी को। असुर जलंधर नाम पति को ।।

करि अति द्वन्द अतुल बलधामा। लीन्हा शंकर से संग्राम ।।

जब निज सैन्य सहित शिव हारे। मरही न तब हर हरिही पुकारे ।।

पतिव्रता वृंदा थी नारी। कोऊ न सके पतिहि संहारी ।।

तब जलंधर ही भेष बनाई। वृंदा ढिग हरी पहुच्यो जाई ।।

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा। कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ।।

भयो जलंधर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा ।।

तिही क्षण दियो कपट हरी टारी। लखी वृंदा दुःख गिरा उचारी ।।

जलंधर जस हत्यो अभीता। सोई रावन तस हरिही सीता ।।

अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा। धर्म खंडी मम पतिहि संहारा ।।

यही कारण लही श्राप हमारा। होवे तनु पाषाण तुम्हारा।।

सुनी हरी तुरतहि वचन उचारे। दियो श्राप बिना विचारे ।।

लख्यो न निज करतूती पति को। छलन चह्यो जब पारवती को ।।

जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा। जग मह तुलसी विटप अनूपा ।।

धग्व रूप हम शालिगरामा। नदी गण्डकी बीच ललामा ।।

जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं। सब सुख भोगी परम पद पईहै ।।

बिनु तुलसी हरी जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा ।।

जो तुलसी दल हरी शिर धारत। सो सहस्त्र घट अमृत डारत ।।

तुलसी हरी मन रंजनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी ।।

प्रेम सहित हरी भजन निरंतर। तुलसी राधा में नाही अंतर ।।

व्यंजन हो छप्पनहु प्रकारा। बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ।।

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही। लहत मुक्ति जन संशय नाही ।।

कवि सुन्दर इक हरी गुण गावत। तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ।।

बसत निकट दुर्बासा धामा। जो प्रयास ते पूर्व ललामा ।।

पाठ करहि जो नित नर नारी। होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ।।

।। दोहा ।।

तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।

दीपदान करि पुत्र फल पावही बंध्यहु नारी ।।

सकल दुःख दरिद्र हरी हार ह्वै परम प्रसन्न ।

आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ।।

लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम।

जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ।।

तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम।


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