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श्रीमद्भगवद्गीता: कर्त्तव्य का पालन करना वैदिक सिद्धांत
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
'शोक' का कोई कारण नहीं
श्लोक-
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।
तथापि त्वं महाबाहो नैनं शोचितुमर्हसि।
अनुवाद एवं तात्पर्य : किन्तु यदि तुम सोचते हो कि आत्मा अथवा जीवन के लक्षण सदा जन्म लेते हैं तथा सदा मरते हैं तो भी हे महाबाहु! तु हारे शोक करने का कोई कारण नहीं है। कोई भी मानव थोड़े से रसायनों की क्षति के लिए शोक नहीं करता तथा अपना कत्र्तव्य पालन नहीं त्याग देता है। इस सिद्धांत के अनुसार चूंकि पदार्थ से प्रत्येक क्षण असं य जीव उत्पन्न होते हैं और नष्टï होते रहते हैं, अत: ऐसी घटनाओं के लिए शोक करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता तो अर्जुन को अपने पितामह तथा गुरु के वध करने के पाप फलों से डरने का कोई कारण न था। क्षत्रिय होने के नाते अर्जुन का संबंध वैदिक संस्कृति से था और वैदिक सिद्धांतों का पालन करते रहना ही उसके लिए शोभनीय था।