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धर्म-अध्यात्म
10 अवतारों की खास बातें / विष्णुजी के आठवें अवतार हैं श्रीकृष्ण
Kiran
10 Jun 2023 3:18 PM GMT
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मत्स्य अवतार
मत्स्यावतार भगवान विष्णु का अवतार है जो उनके दस अवतारों में से एक वह प्रथम है। विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है अत: वह ब्रह्मांड की रक्षा हेतु विविध अवतार धारन करते हैं। यह अवतार भगवान ने वेदों को बचाने के लिए और असुर हैग्रीव को मारने के लिए धरा था। साथ ही साथ वैवस्वत मनु, सप्तऋषिगण वह सारे जीव जन्तुओं को प्रथम कल्प की प्रलय से बचाने के लिए भी लिया था। प्राचीन समय में असुर हयग्रीव का आतंक बढ़ गया था और पूरी पृथ्वी जल मग्न हो गई थी। विष्णुजी ने मछली के रूप में हयग्रीव का वध किया और पृथ्वी को जल से निकाला था।
कूर्म अवतार
कूर्म अवतार को 'कच्छप अवतार' (कछुआ के रूप में अवतार) भी कहते हैं। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नोंकी प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।
वराह अवतार
वराह अवतार हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से तृतीय अवतार हैं जो भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया को अवतरित हुए। प्राचीन काल में हिरण्याक्ष नाम के एक दैत्य ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था। उस समय भगवान विष्णु ने वराह के रूप में अवतार लिया और हिरण्याक्ष का वध किया। पृथ्वी समुद्र से बाहर निकाला।
नृसिंह अवतार
नृसिंह अवतार हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चतुर्थ अवतार हैं जो वैशाख में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अवतरित हुए। हिरण्यकश्यप नाम के असुर का पुत्र था प्रहलाद। जिसे भक्त प्रहलाद के नाम से जाना जाता है। प्रहलाद की रक्षा के लिए विष्णुजी ने नृसिंह अवतार लिया था और हिरण्यकश्यप का वध किया था।
वामन अवतार
वामन अवतार हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से पाँचवें अवतार हैं जो भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अवतरित हुए। असुरों के राजा बलि का घमंड तोड़ने के लिए विष्णुजी ने वामन अवतार लिया था। बलि ने वामनदेव को तीन पग जमीन देने का वचन दिया था। वामनदेव ने एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया था। तब बलि ने तीसरा पग अपने सिर पर रखवा लिया तो वह पाताल में पहुंच गया था।
परशुराम अवतार
परशुराम राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र थे। वे विष्णु के अवतार और शिव के परम भक्त थे। इन्हें शिव से विशेष परशु प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। परशुराम भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार थे, जो वामन एवं रामचन्द्र के मध्य में गिना जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये 'जामदग्न्य' भी कहे जाते हैं। इनका जन्म अक्षय तृतीया, (वैशाख शुक्ल तृतीया) को हुआ था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। परम्परा के अनुसार इन्होंने क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए इनका जन्म हुआ था।
श्रीराम अवतार
राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, और इन्हें श्रीराम और श्रीरामचन्द्र के नामों से भी जाना जाता है। रामायण में वर्णन के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा, चक्रवर्ती सम्राट दशरथ ने पुत्र की कामना से यज्ञ कराया जिसके फलस्वरूप उनके पुत्रों का जन्म हुआ। श्रीराम का जन्म देवी कौशल्या के गर्भ से अयोध्या में हुआ था। श्रीराम जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम जयंती या राम नवमी का पर्व मनाया जाता है। राम भगवान का जन्म हुआ था उस समय रावण का आतंक था। श्रीराम ने रावण का वध किया और तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी।
श्रीकृष्ण अवतार
श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर माने जाते हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। द्वापर युग में कंस और दुर्योधन जैसे अधर्मियों का आतंक बढ़ गया था। श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया। पांडवों से दुर्योधन के कौरव वंश का अंत करवाया और धर्म की स्थापना की।
बुद्ध अवतार
गौतम बुद्ध को भी हिन्दुओं के वैष्णव सम्प्रदाय में भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। उन्होंने समाज को हिंसा से दूर रहने का उपदेश दिया था।
कल्कि अवतार
वैष्णव ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार अन्तहीन चक्र वाले चार कालों में से अन्तिम कलियुग के अन्त में हिन्दू भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। जब भगवान कल्कि देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे तब सतयुग का प्रारंभ होगा। ये अभी प्रकट नहीं हुआ है, लेकिन कलियुग के अंत में जब अधर्म काफी बढ़ जाएगा, तब भगवान विष्णु कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और धर्म की स्थापना करेंगे। कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। भगवान का यह अवतार 'निष्कलंक भगवान' के नाम से भी जाना जायेगा। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की भगवान श्री कल्कि 64 कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार होंगे शास्त्रों के अनुसार यह अवतार भविष्य में होने वाला है। कलियुग के अन्त में जब शासकों का अन्याय बढ़ जायेगा। चारों तरफ पाप बढ़ जायेंगे तथा अत्याचार का बोलबाला होगा तब इस जगत का कल्याण करने के लिए भगवान विष्णु कल्कि के रूप में अवतार लेंगे।
श्रीमद्भागवत-महापुराण के 12वे स्कंद के अनुसार-
सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।
अर्थ- शम्भल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।
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