धर्म-अध्यात्म

गरुड़ पुराण में श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है, जानिए पूर्वजों के श्राद्ध करने का अधिकारी किसे माना जाता है

Bhumika Sahu
15 July 2021 5:38 AM GMT
गरुड़ पुराण में श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है, जानिए पूर्वजों के श्राद्ध करने का अधिकारी किसे माना जाता है
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गरुड़ पुराण में श्राद्ध करने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं. श्राद्ध करने वाले अधिकारी परिजन भी तय किए गए हैं. जानिए किस तरह से विधि​ विधान पूर्वक श्राद्ध ​करके हम अपने पूर्वजों को संतुष्ट कर सकते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गरुड़ पुराण में श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है. श्राद्ध के जरिए हम अपने पूर्वजों के किए अहसान के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं. कहा जाता है कि जिस घर में पितरों की श्राद्ध श्रद्धापूर्वक की जाती है, वहां परिवार फलता-फूलता है. परिवार में यश, कीर्ति, सफलता, संतान और धन-धान्य आदि बना रहता है. पितर संतुष्ट होते हैं और अपने बच्चों को आशीर्वाद देते हैं.

लेकिन जो लोग जीवित रहते हुए अपने माता पिता का अनादर करते हैं, मृत्यु के बाद अपने पितरों की श्राद्ध नहीं करते, किसी निरअपराध की हत्या करते हैं और मृत्यु के बाद अपने सम्माननीय जनों का विधि पूर्वक श्राद्ध नहीं करते, उनके घर में पितृ दोष लगता है. गरुड़ पुराण में श्राद्ध के कुछ नियम भी बताए गए हैं. इन नियमों के अनुसार श्राद्ध करने का अधिकार भी परिवार के लोगों के लिए तय किए गए हैं.
इन्हें है श्राद्ध करने का अधिकार
किसी की मृत्यु के बाद यदि उसका पुत्र नहीं है तो पत्नी अपने पति के निमित्त श्राद्ध कर सकती है. पत्नी के न होने पर सगे भाई को श्राद्ध करने का अधिकार दिया गया है. भाई के न होने पर संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए. एक से ज्यादा पुत्रों के होने पर श्राद्ध का अधिकार सबसे बड़े पुत्र को दिया जाता है. पुत्र के न होने पर पौत्र और प्रपौत्र को श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त है. पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री भी श्राद्ध कर सकती है. पत्नी का श्राद्ध को पति तभी कर सकता है, जब उसका कोई पुत्र न हो. पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजों को श्राद्ध का अधिकार प्राप्त है. इसके अलावा गोद लिए अधिकारी को भी श्राद्ध करने का अधिकार दिया गया है.
ये हैं श्राद्ध के नियम
पूर्वजों की जिस तिथि में मृत्यु हुई है, पितृ पक्ष की उन्हीं तिथियों में पितरों का श्राद्ध किया जाता है. यदि किसी कारणवश उस तिथि में श्राद्ध नहीं कर पाए हैं तो अमावस्या के दिन आप श्राद्ध कर सकते हैं. सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा का स्थान और पितरों के स्थान को गोबर से लीपना चाहिए और गंगाजल से पवित्र करना चाहिए. फिर पितरों के नाम पर ब्राह्मण से तर्पण वगैरह कराना चाहिए. उसके बाद दिन के 12 बजकर 24 मिनट तक पितर के नाम से ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. इसके अलावा ब्राह्मण को भोजन हमेशा पत्ते या थाली में खिलाना चाहिए, कभी डिस्पोजल का इस्तेमाल न करें. खाने को बनाते समय शुद्धता का खयाल रखें और ब्राह्मण को खाना खिलाने से पहले गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के नाम से भोजन निकालें. भोजन कराने के बाद ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा देकर सम्मानपूर्वक विदा करें.


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