- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- अभिजीत मुहूर्त में कलश...
धर्म-अध्यात्म
अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना का विशेष महत्व, जानिए चौघड़िया मुहूर्त
Bhumika Sahu
5 Oct 2021 5:54 AM GMT
x
महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए पटना तैयार हो चुका है। राजधानी में बड़ी संख्या में घरों में कलश स्थापना होती है। जानकारों के अनुसार घट स्थापना मुहूर्त और अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना का विशेष महत्व है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए पटना तैयार हो चुका है। राजधानी में बड़ी संख्या में घरों में कलश स्थापना होती है। जानकारों के अनुसार घट स्थापना मुहूर्त और अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। घट स्थापना के दिन चित्रा नक्षत्र, गुरुवार दिन साथ-साथ विष कुम्भ जैसे शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। इस दिन कन्या राशि में चर्तुग्रही योग का निर्माण भी हो रहा है। घट स्थापना मुहूर्त 7 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 7 मिनट तक और अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट के बीच है।
ज्योतिषाचार्य पीके युग कहते हैं कि 7 अक्टूबर को चित्रा वैधृति योग का निषेध होने से कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त में विशेष फलदायी होगा। इस मुहूर्त में जो श्रद्धालु माता का आह्वान नहीं कर पाए, वे दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से दोपहर 1 बजकर 42 मिनट तक लाभ का चौघड़िया में और 1 बजकर 42 मिनट से शाम 3 बजकर 9 मिनट तक अमृत के चौघड़िया में कलश-पूजन कर सकते हैं। पीके युग कहते हैं कि शास्त्रत्तें में फल सिद्धि के लिए एक पाठ, उपद्रवशांति के लिए तीन पाठ, सब प्रकार की शांति के लिए पांच पाठ, भयमुक्ति के लिए सात पाठ, यज्ञ फल प्राप्ति के लिए नौ पाठ का विधान है। यदि कोई नौ दिन पाठ करने में असमर्थ है चार, तीन, दो या एक दिन के लिए सात्विक उपवास के साथ पाठ कर सकता है।
व्रती तेरह अध्याय का अपनी सुविधा अनुसार नौ दिनों में विभाजित कर लेते हैं और अंत में सिद्धकुंजिका स्रोत का पाठ करते है। देवी को रक्त कनेर (ओरहुल) का फूल विशेष प्रिय है। समान्यत: व्रती नवमी पूजन के पश्चात उसी दिन कुमारी पूजन व हवन कार्य कर सकते हैं।
शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व
आश्विन की नवरात्रा शारदीय नवरात्र कहलाता है। सूर्य के दक्षिणायन काल में देवी पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। इसलिए अश्विन की नवरात्र में विशेष रूप से देवी पूजन की परंपरा है। प्रतिपदा से नवमी तक देवी के नौ रूपों का पूजन होता है। शास्त्रत्तें में चैत, आषाढ़, आश्विन एवं माघ महीने के शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चार नवरात्र की चर्चा मिलती है। आषाढ़ एवं माघ मास में होने वाले गुप्त नवरात्र का तंत्र साधना में विशेष महत्व है। चैत में बासन्ती नवरात्र का आयोजन होता है।
Next Story