धर्म-अध्यात्म

देवशयनी एकादशी पर बन रहा विशेष संयोग, इस शुभ मुहूर्त में ऐसे करें विष्णु जी की पूजा

Subhi
10 July 2022 3:04 AM GMT
देवशयनी एकादशी पर बन रहा विशेष संयोग, इस शुभ मुहूर्त में ऐसे करें विष्णु जी की पूजा
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पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जानते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी से ही भगवान विष्णु अगले चार मास के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं।

पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जानते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी से ही भगवान विष्णु अगले चार मास के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इसी कारण इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस एकादशी को आषाढ़ी एकादशी, पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जानते है। देवशयनी एकादशी का काफी अधिक महत्व है। क्योंकि इसके साथ ही भगवान विष्णु अगले चार मास के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं और मांगलिक कार्यों की मनाही हो जाती है। जानिए देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र।

देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

देवशयनी एकादशी की तिथि- 10 जुलाई 2022

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी प्रारंभ- 9 जुलाई शाम 4 बजकर 39 मिनट से

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का समापन- 10 जुलाई दोपहर 2 बजकर 13 मिनट तक

अनुराधा नक्षत्र- 10 जुलाई सुबह 9 बजकर 55 मिनट से 11 जुलाई सुबह 07 बजकर 50 मिनट तक

शुभ योग - 10 जुलाई सुबह 4 बजकर 2 मिनट से 11 जुलाई सुबह 12 बजकर 45 मिनट तक।

पारण का समय- 11 जुलाई सुबह 5 बजकर 52 मिनट से 11 जुलाई सुबह 8 बजकर 32 मिनट पर।

देवशयनी एकादशी की पूजा विधि

एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत तरीके से पूजा की जाती है।

देवशयनी एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें।

भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।

अब भगवान विष्णु की पूजा आरंभ करें।

पहले थोड़ा सा जल छिड़ककर भगवान को फूल, माला, पीला चंदन, रोली, अक्षत चढ़ाने दें।

अब भोग लगाने के साथ तुलसी दल चढ़ा दें।

फिर जल चढ़ाने के साथ दीपक-धूप जला दें।

विष्णु चालीसा के साथ सहस्त्रनाम का पाठ कर लें।

अंत में विधिवत आरती कर लें।

भगवान विष्णु जी को सुलाते समय करें इन मंत्र का उच्चारण

'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।


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