धर्म-अध्यात्म

सद्गुरु के द्वारा कुछ अनमोल विचार,अपने आपको ऐसे बनाये रचनात्मक

Tulsi Rao
21 Feb 2023 4:36 PM GMT
सद्गुरु के द्वारा  कुछ अनमोल विचार,अपने आपको ऐसे बनाये रचनात्मक
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फाइल फोटो


विचार की जगह, अगर आपके पास मात्र समझ हो और हर समय आप जीवन को ही समझते-सीखते हों

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |मैं यह नहीं मानता कि मनुष्य रचनात्मक हो सकता है। अगर हम अपने चारों ओर की सृष्टि देखें, सृष्टिकर्ता की रचनात्मकता का गहराई से अवलोकन करें तो हम कई तरीकों से उसकी नकल कर सकते हैं। अलग-अलग तरह से जोड़कर, समूह बनाकर, इकट्ठा हुई चीजों को अलग कर उन्हें दूसरों के साथ जोड़कर, हम समाज में रचनात्मक दिख सकते हैं, पर वास्तविक तौर पर हम रचनात्मक नहीं हैं, क्योंकि हर वह चीज जो बनाई जा सकती है, सृष्टि रचना में पहले ही बन चुकी है। अधिक से अधिक हम बस एक चालाक कारीगर हैं। रचनात्मकता को अगर आप कुछ बनाना समझते हैं, चाहे आप फिल्म बनाएं, कोई तस्वीर बनाएं, इमारत बांधें, कुछ बोलें या और भी कुछ करें, वास्तविक रूप से यह रचनात्मकता नहीं है। यह चालाकी से की गई नकल है। चूंकि हमने जीवन के अलग-अलग पहलुओं की तरफ ध्यान दिया है, इसलिए हम इस तरह से नकल कर सकते हैं, जो दूसरे लोगों को संभव नहीं लगती थी।

अगर आपको नकल शब्द पसंद न हो तो आप इसे दोहराव या पुनर्निर्माण कह सकते हैं। अगर आप इंसानों को देखें तो किसी के भी सींग नहीं हैं, ना ही तीसरी बांह है और ना ही तीसरी आंख। सब कुछ एक जैसा ही है, पर फिर भी हर इंसान अलग है। अगर आप इंसान की खासियत आसान शब्दों में बताना चाहें तो हरेक के दो पैर हैं, दो हाथ, एक नाक, दो आंखें... आदि, आदि! पर हर मनुष्य एकदम अलग तरह का है, हरेक की हर बात निराली है। यह सृष्टि रचना का स्वभाव है। कभी भी, किसी भी मनुष्य को यह नहीं सोचना चाहिए कि हम कुछ बना रहे हैं। किसी भी तरह से, जाने-अनजाने, हम उन्हीं चीजों में से कुछ बनाते हैं, जिनका असर हम पर पड़ा है।

आप जो चाहे बनाएं, कोई आभूषण या इमारत या कुछ भी, किसी भी रूप, रंग या आकार में आपके दिमाग में पहले से है। वह दिमाग में इसलिए है, क्योंकि वह सृष्टि में पहले से ही है। आपने बहुत सारे प्रभाव बिना जागरूकता के अपने अंदर बना लिए हैं। आपके मन में, जो आकार, प्रकार, रंग आदि हैं, उनमें कुछ की अभिव्यक्ति, बिना जागरूकता के, आपके द्वारा हो जाती है। इस संदर्भ में, जब कोई कहता है कि यह आश्रम बहुत सुंदर है, तो मैं कहता हूं कि मैंने पहाड़ नहीं बनाये हैं और वे ही आश्रम की सबसे बड़ी खूबसूरती हैं। वे एक खास तरह की पृष्ठभूमि बनाते हैं। एक बार शंकरन पिल्लै ईशा योग सेंटर में आये और उन्होंने मांग रखी कि उन्हें ऐसा कमरा चाहिए, जिसमें से सबसे अच्छा दृश्य दिखता हो। हमनें उन्हें चित्रा ब्लाक में ऐसा ही कमरा दिया। फिर उन्होंने शिकायत की, 'मैंने अच्छा दृश्य दिखने वाला कमरा मांगा था।' हमने कहा, 'इसी कमरे में से सबसे अच्छा दृश्य दिखता है।' वे बोले, 'पर ये बेकार के पहाड़ बीच में आ रहे हैं!' ऐसा ही बहुत सारे मनुष्यों के साथ होता है। वे चीजों को उस रूप में नहीं देखते, जैसी वे हैं। उनके पास पहले से कुछ अलग विचार होते हैं। अगर आपको किसी चीज को सुंदर बनाना हो तो पहली बात, आपके पास उस बारे में पहले से विचार नहीं होने चाहिए। कोई विचार वास्तविकता के साथ मेल रखे, यह आवश्यक नहीं है।

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विचार की जगह, अगर आपके पास मात्र समझ हो और हर समय आप जीवन को ही समझते-सीखते हों, तब अगर आप कुछ बनाना चाहें, तब सृजनात्मकता के लिए आवश्यक आपके पास सब कुछ होगा-आकार, प्रकार, रंग या जो कुछ भी ज़रूरी हो! आप चाहे संगीत बनाना चाहें या कपड़े या इमारतें, अगर आप पर्याप्त ध्यान दें तो यह सब मौजूद होगा। यह सुनने में बहुत अजीब लग सकता है, पर जब मैं कविता लिखता हूं तो उसे दूसरी बार नहीं पढ़ता। मैं किसी खास धारणा को लेकर काम नहीं करता। एक तरह से कहें तो मैं कविता को बूंद-बूंद करके बहाता हूं। यही चीज किसी आकार या किसी चित्र का रूप भी ले सकती है। मैं चाहे बोलूं या गाड़ी चलाऊं या लिखूं या चित्र बनाऊं, मेरे लिए यह सब एक ही जैसे हैं। आपके लिए अभिव्यक्ति का मतलब शब्द लिखना या उच्चारना नहीं, बल्कि आपमें कोई विचार दर्शन या विचारधारा होनी चाहिए। मेरे पास यह अभिव्यक्ति के रूप में नहीं है। ये बूंद-बूंद करके होने वाला प्रवाह है। मैं हमेशा तैयार हूं, पर अगर परिस्थिति भी तैयार हो तो मैं एक प्रबल, प्रचंड प्रवाह बन जाऊंगा, नहीं तो मैं बूंद-बूंद प्रवाह बनकर रहूंगा।

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