धर्म-अध्यात्म

सोम प्रदोष व्रत कल, इस शुभ मुहूर्त में करें भगवान शिव की पूजा, जानिए प्रदोष व्रत नियम

Renuka Sahu
3 Oct 2021 6:01 AM GMT
सोम प्रदोष व्रत कल, इस शुभ मुहूर्त में करें भगवान शिव की पूजा, जानिए प्रदोष व्रत नियम
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फाइल फोटो 

प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। अक्टूबर मास का पहला प्रदोष व्रत 4 अक्टूबर 2021, दिन सोमवार को रखा जाएगा। सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। हर महीने त्रयोदशी तिथि शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में आती है। जानिए सोम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और व्रत कथा-

प्रदोष व्रत शुभ समय-
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 03 अक्टूबर की रात 10 बजकर 29 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 4 अक्टूबर को रात 09 बजकर 05 मिनट पर समाप्त होगी।
प्रदोष व्रत पूजा विधि-
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में करनी चाहिए। सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल माना जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के मंदिर जाकर दर्शन करना शुभ होता है। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक व बेलपत्र अर्पित करें। इसके बाद धूप, अगरबत्ती आदि मंत्रों का जाप करते हुए भगवान शिव की पूजा करें। जाप के बाद प्रदोष व्रत कथा सुनें। अंत में आरती कर परिवार में प्रसाद बांटे। व्रत का पारण दूसरे दिन फलाहार कर करें।
सोम प्रदोष व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। वह खुद का और अपने पुत्र का पेट पालती थी।
एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। वैसा ही किया गया।
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं।


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