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हर माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द षष्ठी (Skand Shashthi) व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय की विधिवत पूजा की जाती है। इस कारण इसे कुमार षष्ठी भी कहा जाता है। भगवान स्कंद को मुरुगन,कार्तिकेयन, सुब्रमण्यम के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। इसके साथ ही संतान की प्राप्ति के साथ उनकी खुशहाली के लिए यह व्रत रखना शुभ माना जाता है। जानिए स्कंद षष्ठी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र
स्कंद षष्ठी व्रत का शुभ मुहूर्त
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि प्रारंभ- 04 जुलाई शाम 6 बजकर 33 मिनट से शुरू
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का समापन- 5 जुलाई शाम 7 बजकर 29 मिनट तक
मघा नक्षत्र - 3 जुलाई सुबह 06 बजकर 30 मिनट से 04 जुलाई सुबह 08 बजकर 44 मिनट तक
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र - 4 जुलाई सुबह 08 बजकर 44 मिनट से 5 जुलाई सुबह 10 बजकर 30 मिनट तक
स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा विधि
सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें और साफ व्रत धारण कर लें।
भगवान कार्तिकेय का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प ले लें।
पूजा घर में जाकर विधिवत तरीके से पूजा करें। सबसे पहले भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।
इसके बाद भगवान कार्तिकेय की पूजा करें।
सबसे पहले थोड़ा सा जल अर्पित करें।
भगवान को पुष्प, माला, फल, मेवा, कलावा, सिंदूर, अक्षत, चंदन आदि लगाएं।
अब भोग लगाएं।
फिर दीपक-धूप करके मंत्र का जाप करें।
अंत में विधिवत तरीके से आरती करते भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
मंत्र
देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥
स्कंद षष्ठी का महत्व
स्कंद षष्ठी व्रत को दक्षिण भारत में प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन विधिवत तरीके से भगवान कार्तिकेय की पूजा करने के साथ व्रत रखने से व्यक्ति को सभी कष्टों से छुटकारा मिसलने के साथ संतान सुख प्राप्त होता है।