धर्म-अध्यात्म

Skanda Sashti 2025: स्कंद षष्ठी के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, हर काम में मिलेगी सफलता

Renuka Sahu
5 Jan 2025 3:37 AM GMT
Skanda Sashti 2025:   स्कंद षष्ठी के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, हर काम में मिलेगी सफलता
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Skanda Shashthi 2025: हिंदू धर्म शास्त्रों में स्कंद षष्ठी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। स्कंद षष्ठी का दिन भगवान शिव के बड़े पुत्र भगवान कार्यिकेय को समर्पित है। इस दिन जो लोग भगवान कार्यिकेय की पूजा और व्रत करते हैं, उन्हें हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। साथ ही उनका घर खुशियों से भर जाता है। इस दिन जो लोग भगवान कार्यिकेय की पूजा और व्रत करते हैं, उन्हें सभी रोगों से मुक्ति मिलती है। इस दिन पूजा के समय स्कंद षष्ठी की व्रत कथा भी पढ़ी जाती है। व्रत कथा पढ़े बिना पूजा और व्रत अधूरा माना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल आज स्कंद षष्ठी है। स्कंद षष्ठी की तिथि आज रात 10 बजे से शुरू होगी। वहीं, यह तिथि कल 5 जनवरी को रात 8 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में स्कंद षष्ठी का व्रत कल रखा जाएगा।
स्कंद षष्ठी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता पार्वती ने राजा दक्ष के यज्ञ में स्वयं को भस्म कर लिया था, तब भगवान शिव वैरागी बन गए और ध्यान में लीन हो गए। उनके ध्यान में लीन होने के बाद पूरे ब्रह्मांड से शक्तियां लुप्त हो गईं। इसके बाद राक्षस तारकासुर ने देवताओं की दुनिया में आतंक मचा दिया। उसने देवताओं को युद्ध में हरा दिया। धरती और स्वर्ग में हर जगह अन्याय और अनैतिकता अपने चरम पर पहुंच गई। तब देवताओं ने राक्षस तारकासुर के अंत के लिए ब्रह्मा जी से प्रार्थना की। इस पर ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा कि तारकासुर की मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही संभव है। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भगवान शिव को उनके ध्यान से जगाने का प्रयास किया। देवताओं ने इसके लिए भगवान कामदेव से मदद मांगी।
इसके बाद कामदेव ने भगवान शिव के मन में माता पार्वती के प्रति प्रेम की भावना जगाने के लिए अपने बाणों से भगवान शिव पर पुष्प फेंके। कामदेव के ऐसा करने से शिव का ध्यान भंग हुआ। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला और कामदेव को भस्म कर दिया। हालांकि तपस्या भंग होने के बाद भगवान एक बार फिर माता पार्वती की ओर आकर्षित हो गए। इसके बाद इंद्र और अन्य देवताओं ने भगवान शिव को अपनी समस्या बताई। तब भगवान शिव ने माता पार्वती के प्रेम की परीक्षा ली। माता पार्वती की तपस्या के बाद शुभ घड़ी में उनका और भगवान शिव का विवाह हुआ। विवाह के बाद भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ। इसके बाद भगवान कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध किया। उन्होंने देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। मान्यताओं के अनुसार स्कंद षष्ठी के दिन ही भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा और व्रत का प्रावधान है।
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