धर्म-अध्यात्म

Skand Shashti 2020: जानें चंपा षष्ठी की पूजन विधि, मंत्र, महत्व और कथा

Deepa Sahu
20 Dec 2020 2:19 PM GMT
Skand Shashti 2020: जानें चंपा षष्ठी की पूजन विधि, मंत्र, महत्व और कथा
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चंपा षष्ठी रविवार 20 दिसंबर को है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : चंपा षष्ठी रविवार 20 दिसंबर को है। इस दिन चंपा षष्ठी का व्रत है। यह व्रत भगवान कार्तिकेय के लिए रखा जाता है। चंपा षष्ठी को स्कंद षष्ठी के नाम से जाना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, चंपा षष्ठी व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन रखा जाता है। भगवान कार्तिकेय जी को चंपा पुष्प बेहद प्रिय है। इसलिए इसे चंपा षष्ठी कहा जाता है। स्कंद षष्ठी व्रत मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में लोकप्रिय है। भगवान कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र है

चंपा षष्ठी तिथि का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कार्तिकेय षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं। दक्षिण दिशा में भगवान कार्तिकेय जी का निवास स्थान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति कमजोर है या मंगल ग्रह पीड़ित है तो ऐसे जातकों को मंगल देव को मजबूत करने और इस ग्रह के शुभ फल पाने के लिए चंपा षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय का व्रत करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। इनकी पूजा से जीवन में हर तरह की कठिनाइंया दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना से ये व्रत किया जाता है।
स्कंद षष्ठी व्रत विधि
सुबह जल्दी उठें और घर की साफ-सफाई करें।
इसके बाद स्नान-ध्यान कर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें।
पूजा घर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें।
पूजा जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि से करें।
अंत में आरती करें।
वहीं शाम को कीर्तन-भजन पूजा के बाद आरती करें।
इसके पश्चात फलाहार करें।
भगवान कार्तिकेय की पूजा का मंत्र -
देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥
ऐसे हुआ था भगवान कार्तिकेय का जन्म
कुमार कार्तिकेय के जन्म का वर्णन हमें पुराणों में ही मिलता है। जब देवलोक में असुरों ने आतंक मचाया हुआ था, तब देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा था। लगातार राक्षसों के बढ़ते आतंक को देखते हुए देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से मदद मांगी थी। भगवान ब्रह्मा ने बताया कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा, परंतु उस काल च्रक्र में माता सती के वियोग में भगवान शिव समाधि में लीन थे।
इंद्र और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए भगवान कामदेव की मदद ली और कामदेव ने भस्म होकर भगवान भोलेनाथ की तपस्या को भंग किया। इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और दोनों देवदारु वन में एकांतवास के लिए चले गए। उस वक्त भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में निवास कर रहे थे।
उस वक्त एक कबूतर गुफा में चला गया और उसने भगवान शिव के वीर्य का पान कर लिया परंतु वह इसे सहन नहीं कर पाया और भागीरथी को सौंप दिया। गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभक्त हो गया और इससे 6 बालकों का जन्म हुआ। यह 6 बालक मिलकर 6 सिर वाले बालक बन गए। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म हुआ।


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