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धर्म-अध्यात्म
Sita Navmi 2021 Date : कब है सीता नवमी इस बार बना उलझन, जानें सीता नवमी का शुभ मुहूर्त और महत्व
Deepa Sahu
20 May 2021 10:16 AM GMT
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सीता नवमी पर्व इस साल 20 और 21 मई को मनाया जाएगा।
सीता नवमी पर्व इस साल 20 और 21 मई को मनाया जाएगा। इस तिथि को जानकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि वैशाख माह की शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को मां सीता का भूमि से प्राकट्य हुआ था। इस दिन सुहागिन महिलाएं माता सीता का पूजन करती हैं और पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं सीता जयंती का मुहूर्त और महत्व…
सीता जयंती का मुहूर्त 20 और 21 मई
मां सीता का जन्म नवमी तिथि को हुआ था और नवमी तिथि 20 मई 2021 को दोपहर 12:25 पर प्रारंभ हो रही है। साथ ही तिथि का समापन 21 मई 2021 को सुबह 11: 10 मिनट पर हो रहा है। कुछ लोग सूर्योदय तिथि को महत्व देते हुए 21 मई को मां सीता का पूजा करेंगे। वहीं कुछ लोग 20 मई को प्राकट्योत्सव मनाएंगे। दरअसल शास्त्रों का मत है कि देवी सीता का प्राकट्य मध्याह्न में हुआ था इसलिए मध्याह्न व्यापिनी नवमी तिथि को ही सीता जयंती माना शास्त्र सम्मत होगा क्योंकि 21 मई को देश के कई भागों में मध्याह्न से पूर्व ही नवमी तिथि समाप्त हो जा रही है। इसलिए 20 मई को जानकी नवमी का व्रत पूजन शास्त्र के नियमानुसार उचित होगा।
सीता नवमी का महत्व
देवी सीता को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। देवी सीता धैर्य और समर्पण की देवी मानी जाती हैं। इसलिए इस दिन सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और माता सीता की पूजा करती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत और पूजा करने से तीर्थयात्राओं और दान- पुण्य का कई गुणा फल प्राप्त होता है। देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
सीता नवमी पूजा विधि
सूर्योदय से पहले उठ जाएं। इसके बाद धरती माता को प्रणाम कर जमीन पर पैर रखें। स्नान करने के बाद माता सीता का पूजन करें। रोली, अक्षत, कलावा चढ़ाकर भोग लगाएं।
माता सीता की जन्मकथा
शास्त्रों के अनुसार, एक बार मिथिला में भयंकर सूखे से राजा जनक बहुत परेशान और दु:खी थे। तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए ऋषियों ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। तब राजा जनक ने यज्ञ-हवन करवाया और भूमि पर हल जोतने लगे। तब ही इस दौरान उन्हेें एक कलश में सुंदर कन्या मिली। राजा जनक के यहां कोई संतान नहीं थी। राजा जनक नेे उस कन्या को गोद में लेकर हल के आगे के भाग जिसे सीत कहा जाता है उससेे प्राप्त होने के कारण उस कन्या का नाम उन्होंने सीता रख दिया।
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