धर्म-अध्यात्म

श्रीराम और सीता का नारद मुनि के श्राप के कारण हुआ था वियोग, जानिये नारद मुनि से जुड़ा ये प्रसंग

Renuka Sahu
17 May 2022 6:41 AM GMT
Shriram and Sita were separated due to the curse of Narad Muni, know this incident related to Narad Muni
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फाइल फोटो 

हर साल ज्येष्ठ मास की प्रतिपदा तिथि को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर साल ज्येष्ठ मास की प्रतिपदा तिथि को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है. नारद मुनि सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं. नारद जी को देवर्षि कहा जाता है और उन्हें चलायमान होने का वरदान प्राप्त है, इसलिए वे एक लोक से दूसरे लोक में भ्रमण करते रहते हैं और तमाम लोकों का हाल जानकर जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु तक पहुंचाते हैं. इस कारण नारद जी को सृष्टि के आदि पत्रकार के रूप में भी जाना जाता है. नारद मुनि को नारायण के अनन्य भक्तों में से एक माना गया है. लेकिन रामायण के एक प्रसंग के अनुसार देवर्षि नारद के ही श्राप के कारण ही त्रेतायुग में नारायण के श्रीराम स्वरूप को माता सीता के साथ वियोग सहना पड़ा था. आज 17 मई को ज्येष्ठ मास की प्रतिपदा तिथि पर देवर्षि नारद की जयंती (Narada Jayanti 2022) के तौर पर मनाया जा रहा है. इस मौके पर जानिए नारद मुनि से जुड़ा ये रोचक प्रसंग.

ये है नारद मुनि से जुड़ा प्रसंग

रामायण के प्रसंग के अनुसार एक बार महर्षि नारद को अहंकार हो गया कि उनकी नारायण भक्ति और ब्रह्मचर्य को कोई भंग नहीं कर सकता. उनके इस भ्रम को दूर करने के लिए नारायण ने एक माया रची. उन्होंने एक सुंदर से नगर का इस्तेमाल किया और जहां एक राजकुमारी का स्वयंवर किया जा रहा था. जब नारद मुनि वहां पहुंचे तो वहां राजकुमारी के रूप को देखकर वे उन पर मोहित हो गए. लेकिन नारद जी जानते थे कि इस रूप में उनसे कोई भी विवाह करने को राजी नहीं होगा.

ऐसे में वे नारायण के पास पहुंचे और उनसे कहा कि मुझे ​हरि जैसा ही रूप चाहिए. नारायण ने तथास्तु कहकर अपने अनन्य भक्त की कामना को पूरा कर दिया. हरि नारायण का भी नाम है और इसका दूसरा अर्थ वानर होता है. नारद मुनि का रूप वानर की तरह हो गया. जब नारद मुनि स्वयंवर में पहुंचे तो उनका मुख देखकर वहां मौजूद लोग जोर जोर से हंसने लगे. नारद जी ने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया.

इसके बाद नारायण वहां राजा के रूप में पहुंचे और राजकुमारी को वहां से लेकर चले गए. जब नारद मुनि ने अपना चेहरा आइने में देखा तो क्रोधित होकर वे नारायण के पास पहुंचे और उन्हें श्राप दे दिया कि जिस तरह मैं स्त्री के के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी तरह आपको भी भविष्य में स्त्री वियोग सहना पड़ेगा. नारायण ने मुस्कुराते हुए उनका वो श्राप स्वीकार कर लिया.

इसके बाद जब उस माया का अंत हुआ तो नारद जी को अपनी भूल का आभास हुआ और उन्होंने नारायण से अपनी इस गलती की क्षमा याचना की. तब नारायण ने उन्हें समझाया कि ये सब उनकी माया के कारण हुआ है और आपके अहंकार को तोड़ने के लिए किया गया था. इसमें आपका कोई दोष नहीं है. इसके बाद जब त्रेतायुग में श्रीराम के रूप में नारायण ने अवतार लिया तब नारद मुनि का श्राप फलीभूत हुआ और राम जी को सीता माता के वियोग को सहना पड़ा.

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