धर्म-अध्यात्म

तुलसीदास की कुटिया का पहरा देते मिले श्री राम और लक्ष्मण, वजह जानकर रह जाएंगे हैरान

Tulsi Rao
9 Jun 2022 8:29 AM GMT
तुलसीदास की कुटिया का पहरा देते मिले श्री राम और लक्ष्मण, वजह जानकर रह जाएंगे हैरान
x

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Ramcharitmanas Story: 2 वर्ष सात माह 26 दिनों में विश्व विख्यात श्री राम चरित मानस की रचना हुई तो भगवान के आदेश पर गोस्वामी तुलसीदास काशी आ गए और लोगों को राम चरित मानस की कथा सुनाने लगे. मानस कथा सुनाते हुए उनके मन में विचार आया कि जिनकी आज्ञा से उन्होंने अयोध्या पहुंच कर इस सुंदर ग्रंथ की रचना की है, क्यों न यही कथा भगवान शंकर को सीधे सुनाई जाए. बस वे मानस लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंच गए. यहां पर अजीब घटना हुई.

राम चरित मानस को की चुराने की कोशिश

काशी विश्‍वनाथ पहुंचकर तुलसीदास जी ने भगवान विश्वनाथ तथा मां अन्नपूर्णा के समक्ष मानस का पाठ किया. पाठ के बाद पुस्तक मंदिर के अंदर रख दी और जब सुबह मंदिर का पट खोला गया तो उस पर सत्यम् शिवम् सुंदरम् लिखा हुआ पाया गया. सभी लोग इस चमत्कार को देख कर चकित रह गए, इस बात की चर्चा दूर दूर तक लोगों के बीच होने लगी जिससे पुस्तक और गोस्वामी तुलसीदास की ख्याति होने लगी. इससे उस समय के कुछ विद्वान पंडित उनसे ईर्ष्या करने लगे और मानस को नष्ट करने का प्रयास किया.

तुलसीदास की कुटिया का पहरा देते मिले श्री राम और लक्ष्मण

तुलसीदास जी से ईर्ष्या करने वाले पंडितों ने जगह-जगह उनकी निंदा करना शुरु कर दिया. उन लोगों ने पुस्तक को नष्ट करने का भी प्रयास किया. उन्होंने पुस्तक चुराने के लिए 2 चोर भी भेजे. चोरों ने देखा कि तुलसीदास की कुटिया के बाहर 2 वीर धनुष बाण लेकर पहरा दे रहे हैं. दोनों बहुत ही सुंदर थे और उनमें से एक श्याम वर्ण था तथा दूसरा गौर वर्ण का था. उन्हें देखते ही चोरों को बुद्धि शुद्ध हो गई और उन्होंने उसी दिन से चोरी न करने की प्रतिज्ञा ली और प्रभु का भजन करने लगे.

जब यह बात तुलसीदास को पता लगा तो वे सब जान गए कि उनकी और पुस्तक की सुरक्षा करने स्वयं प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी चौकीदार बन कर खड़े थे. उन्हें इस बात का दुख हुआ कि उनके जैसे भक्त की सुरक्षा के लिए प्रभु को कितना कष्ट हुआ.

मानस की प्रतिलिपियां बनाने में जुट गए तुलसीदास

इसके बाद तो तुलसीदास जी ने पुस्तक की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपने मित्र टोडरमल के यहां पुस्तक रखवा दी और खुद दूसरी प्रति लिखने लगे. उसी आधार पर वे मानस की दूसरी प्रतिलिपियां तैयार करते रहे. पुस्तक का प्रचार दिनों दिन बढ़ने लगा. इधर ईर्ष्या करने वाले पंडितों को जब कोई और उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने उस समय के विद्वान श्री मधुसूदन सरस्वती जी को पुस्तक देखने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने पूरी पुस्तक बहुत ध्यान से पढ़ी और अपनी सम्मति लिख दी, 'इस काशी रूपी आनन्द वन में तुलसीदास चलता फिरता तुलसी का पौधा है, उसकी कविता रूपी मंजरी बड़ी ही सुंदर है, जिस पर श्रीराम रूपी भौंरा सदा ही मंडराया करता है.'

फिर से हुआ एक चमत्‍कार

तुलसीदास जी से द्वेष रखने वाले पंडितों को इस पर भी संतोष नहीं हुआ और सबने मिल कर पुस्तक की परीक्षा लेने का एक उपाय निकाला. भगवान विश्वनाथ के सामने सबसे ऊपर वेद, उनके नीचे शास्त्र, शास्त्रों के नीचे पुराण, और सबसे नीचे रामचरित मानस को रख कर मंदिर का पट बंद कर दिया गया. सुबह जब सबके सामने मंदिर को खोला गया तो लोगों ने देखा कि रामचरितमानस सबसे ऊपर रखी हुई थी.

इस घटना के बाद पंडित बहुत लज्जित हुए और तुलसीदास जी से क्षमा मांग कर भक्तिभाव से उनके चरण स्पर्श किए. तुलसीदास जी अस्‍सी घाट पर रहने लगे. एक दिन कलियुग मूर्तरूप लेकर उनके पास आया और उन्हें त्रास देने लगा. गोस्वामी जी ने हनुमान जी का ध्यान किया तो उन्होंने विनय के पद रचने को कहा, तब तुलसीदास जी ने विनय पत्रिका की रचना कर उसे भगवान को समर्पित कर दिया.

Next Story