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धर्म-अध्यात्म
अनेक रूपों में मौजूद थे श्रीकृष्ण, छह महीने तक ठहरा रहा चंद्रमा, नहीं हुई सुबह
Shiddhant Shriwas
19 Oct 2021 8:17 AM GMT
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ब्रज क्षेत्र में शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि द्वापरयुग में आज की रात में ही श्रीकृष्ण भगवान ने गोपियों के साथ महारास किया था.
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है. लेकिन ब्रज क्षेत्र में शरद पूर्णिमा के दिन को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. मान्यता है कि द्वापरयुग में शरद पूर्णिमा की रात को ही राधारानी और गोपियों के साथ मिलकर महारास किया था. पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की धवल चांदनी में महारास का वो दृश्य इतना सुंदर था कि प्रकृति भी उसे निहारने के लिए वहां ठहर गई थी.
छह महीने तक महादेव स्वयं गोपी का रूप धारण करके इस रास को देखने के लिए वहां पहुंचे थे और चंद्रदेव इतने मंत्रमुग्ध हो गए थे कि छह महीने तक सुबह नहीं हुई थी. आज 19 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के इस अवसर पर आप भी जानिए श्रीकृष्ण के महारास का ये दिलचस्प किस्सा.
अनेक रूपों में मौजूद थे श्रीकृष्ण
गोवर्धन पर्वत के पास बसे परसौली गांव में श्रीकृष्ण ने अपनी गोपियों के साथ महारास रचाया था. बताया जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को इस स्थान पर जैसे ही श्रीकृष्ण ने मुरली की मधुर धुन बजाना शुरू की, ब्रज की गोपियां बेसुध होकर कृष्ण प्रेम में वहां दौड़ी चली आईं. हर गोपी श्रीकृष्ण के साथ नृत्य करना चाहती थी. इस महारास में गोपियों की इच्छा पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण ने अनेक रूप धारण किए और हर गोपी के साथ रास किया. महारास के दौरान हर तरफ हर गोपी के साथ श्रीकृष्ण ही नजर आ रहे थे. ये नजारा इतना सुंदर था कि देवता भी इस दृश्व का आनंद लेने के लिए व्याकुल हो उठे थे.
गोपी बनकर पहुंचे भोलेनाथ
भगवान शिव नारायण के भक्त हैं. वे भी अपने आराध्य का महारास देखने के लिए इसमें शामिल होने के लिए अधीर हो रहे थे. लेकिन उन्हें गोपियों ने ये कहकर रोक दिया कि इस महारास में श्रीकृष्ण के साथ सिर्फ गोपियां ही आ सकती हैं. इसके बाद अपने आराध्य के इस अद्भुत पल का साक्षी बनने के लिए भोलेनाथ ने गोपी का रूप धारण किया था और महारास में शामिल हुए थे. महादेव का ये रूप गोपेश्वर महादेव के नाम से प्रचलित हुआ. वृंदावन में आज भी महादेव का ये मंदिर मौजूद है. यहां महादेव का सोलह श्रृंगार किया जाता है.
छह महीने तक ठहरा रहा चंद्रमा, नहीं हुई सुबह
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के महारास का मनोरम दृश्य इतना मनमोहक था कि पूर्णिमा की रात सोलह कलाओं से आभूषित चंद्रमा इस दृश्य को ही एकटक निहारते रहे. वे इस महारास में इतने खो गए कि छह महीने तक सुबह नहीं हुई. छह महीने तक चंद्रमा से द्रव्य रूपी अमृत की बरसात हुई, उससे सूर श्याम चंद्र सरोवर का निर्माण हुआ. ये सरोवर गोवर्धन धाम से करीब दो किलोमीटर दूर परसौली में स्थित है.
अमृत बन गया सरोवर
गर्ग संहिता में चंद्र सरोवर का विशेष महात्म्य बताया गया है. कहा जाता है कि इस सरोवर में आचमन करने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है. अगर कोई व्यक्ति इस चंद्र सरोवर में स्नान करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. साथ ही उसे कई तरह के रोगों से छुटकारा मिलता है.
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