धर्म-अध्यात्म

सभी मनोकामनाओं को यथाशीघ्र पूर्ण करता है श्रीकृष्ण ये मंत्र

Tara Tandi
9 July 2023 8:42 AM GMT
सभी मनोकामनाओं को यथाशीघ्र पूर्ण करता है श्रीकृष्ण ये मंत्र
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हिंदू धर्म में वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना को कई सारे व्रत त्योहार समर्पित हैं लेकिन मासिक कृष्ण जन्माष्टमी बेहद ही खास मानी जाती हैं जो कि हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाई जाती हैं इस बार मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत पूजन 9 जुलाई दिन रविवार यानी आज किया जा रहा हैं।
ये दिन भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए बेहद ही खास होता हैं इस दिन हर कोई भगवान श्रीकृष्ण की विधि विधान से पूजा और व्रत आदि करता हैं माना जाता है कि ऐसा करने से प्रभु की कृपा बनी रहती हैं इसी के साथ ही अगर आज के दिन पूजा पाठ के साथ भगवान श्रीकृष्ण के चमत्कारी मंत्रों का जाप किया जाए तो यथाशीघ्र मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और कई तरह के लाभ भी मिलते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं भगवान कृष्ण के मंत्र।
मूल मंत्र
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
संकट नाशक मंत्र
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:
शीघ्र विवाह हेतु मंत्र
क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा
सुख प्राप्ति हेतु मंत्र
श्री कृं कृष्ण आकृष्णाय नमः
धन प्राप्ति हेतु मंत्र
4.ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा
सिद्धि प्राप्ति हेतु मंत्र
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः
प्रेम विवाह हेतु मंत्र
ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय नम:
संतान प्राप्ति हेतु मंत्र
ऊं देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।
कृष्ण गायत्री मंत्र
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् ।।
रोग नाशक कृष्ण मंत्र
ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णाया कुण्ठमेधसे।
सर्वव्याधि विनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।।
समस्या दूर करने हेतु मंत्र
हे कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन।।
श्री कृष्ण स्तोत्र
कदा बृन्दारण्ये विपुलयमुनातीरपुलिने
चरन्तं गोविन्दं हलधरसुदामादिसहितम् ।
अहो कृष्ण स्वामिन् मधुरमुरली मोहन विभो
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥
कदा कालिन्दीये हरिचरणमुद्राङ्किततटे
स्मरन् गोपीनाथं कमलनयनं सस्मितमुखम् ।
अहो कृष्णानन्दाम्बुजवदन भक्तैकसुलभ
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥
कदाचित् खेलन्तं व्रजपरिसरे गोपतनयैः
कथञ्चित् संप्राप्तं किमपि भजतं कञ्जनयनम् ।
अये राधे किल हरसि रसिके कञ्चुकयुगं
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥
कदाचित् गोपीनां हसितचकितं स्निग्धनयनं
स्थितं गोपीवृन्दे नटमिव नटन्तं सुललितम् ।
सुराधीशैः सर्वैः स्तुतपदममुं श्रीहरिमिति
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥
कदाचित् कालिन्द्यां तटतरुकदंबे स्थितममुं
स्मयन्तं साकूतं हृतवसनगोपीस्तनतटम् ।
अहो शक्रानन्दाम्बुजवदन गोवर्द्धनधर
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥
कदाचित् कान्तारे विजयसखमिष्टं नृपसुतं
वदन्तं पार्थेन्द्रं नृपसुत सखे बन्धुरिति च ।
भ्रमन्तं विश्रान्तं श्रितमुरसि रम्यं हरिमहो
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥
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