धर्म-अध्यात्म

श्रावण शिवरात्रि कल, जानिए महत्व और ऐसे करें भगवान शंकर को प्रसन्न

Shiddhant Shriwas
5 Aug 2021 8:43 AM GMT
श्रावण शिवरात्रि कल, जानिए महत्व और ऐसे करें भगवान शंकर को प्रसन्न
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फाल्गुन माह में पड़ने वाली महाशिवरात्रि के समान ही वर्ष की दूसरी श्रेष्ठ शिवरात्रि श्रावण माह की शिवरात्रि ही मानी गयी है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। फाल्गुन माह में पड़ने वाली महाशिवरात्रि के समान ही वर्ष की दूसरी श्रेष्ठ शिवरात्रि श्रावण माह की शिवरात्रि ही मानी गयी है। इस दिन कावड़ यात्रा वाले शिवभक्तों की भीड़ शिवलिंग पर जलाभिषेक करके महादेव की कृपा प्राप्त करते हैं। पुण्येन जायते पुत्रः पुण्येन लभते श्रियम। पुण्येन रोगनाशः स्यात सर्वशास्त्रेण सम्मतः।। माता पार्वती को समझाते हुए भगवान शिव कहते हैं, कि हे शिवे ! पुण्य कर्मो के करने से ही वंश की वृद्धि होती है। पुण्य कर्म करने से ही जीव कीर्तिवान होता है और इसी पुण्य कर्म में लगे रहने से शरीर के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं ऐसा सभी शास्त्रों की सम्मति है। वैसे तो श्रावण माह का एक-एक पल पुन्यफलदायी माना गया है किन्तु, इस माह की शिवरात्रि का दिन कुछ अधिक महत्व रखता है।

शास्त्र कहते हैं की, अवश्यमेव भोक्तव्यम कृते कर्म शुभाशुभं। अर्थात मनुष्य को अपने द्वारा किये हुए पाप-पुण्य जनित कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है। जीव पाप करके भी तभी तक सुखी रह पाता है जब तक कि उसके द्वारा संचित पुण्यकर्मों का कोष खाली नहीं हो जाता। कोष खाली होते ही पाप कर्मो का फल मिलने लगता है, फिर जीव इतना परेशान हो जाता है कि उसे बचने का कोई भी मार्ग दिखाई नहीं देता।

फाल्गुन माह में पड़ने वाली महाशिवरात्रि के समान ही वर्ष की दूसरी श्रेष्ठ शिवरात्रि श्रावण माह की शिवरात्रि ही मानी गयी है। इस दिन कावड़ यात्रा वाले शिवभक्तों की भीड़ शिवलिंग पर जलाभिषेक करके महादेव की कृपा प्राप्त करते हैं। पुण्येन जायते पुत्रः पुण्येन लभते श्रियम। पुण्येन रोगनाशः स्यात सर्वशास्त्रेण सम्मतः।। माता पार्वती को समझाते हुए भगवान शिव कहते हैं, कि हे शिवे ! पुण्य कर्मो के करने से ही वंश की वृद्धि होती है। पुण्य कर्म करने से ही जीव कीर्तिवान होता है और इसी पुण्य कर्म में लगे रहने से शरीर के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं ऐसा सभी शास्त्रों की सम्मति है। वैसे तो श्रावण माह का एक-एक पल पुन्यफलदायी माना गया है किन्तु, इस माह की शिवरात्रि का दिन कुछ अधिक महत्व रखता है।

शास्त्र कहते हैं की, अवश्यमेव भोक्तव्यम कृते कर्म शुभाशुभं। अर्थात मनुष्य को अपने द्वारा किये हुए पाप-पुण्य जनित कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है। जीव पाप करके भी तभी तक सुखी रह पाता है जब तक कि उसके द्वारा संचित पुण्यकर्मों का कोष खाली नहीं हो जाता। कोष खाली होते ही पाप कर्मो का फल मिलने लगता है, फिर जीव इतना परेशान हो जाता है कि उसे बचने का कोई भी मार्ग दिखाई नहीं देता।

इन्हीं महादेव को प्रसन्न करने के लिए अच्छे अवसर के रूप में मास शिवरात्रि का पावन पर्व 06 अगस्त, शुक्रवार को है। शिव की आराधना पंचामृत से करें तो अति उत्तम रहेगा। सामग्री के अभाव में पत्रं-पुष्पं, फलं-तोयं अर्थात- पत्र, पुष्प, फल और जल से करके पूर्ण फल प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए इस दिन आपके पास सामग्री नहीं हो तो भी श्रद्धा-विश्वास के साथ भगवान शिवलिंग पर जल का ही अर्पण करें। ॐ नमः शिवाय। का जप करते रहें, साथ ही ॐ नमो भगवते रुद्राय का जप भी कर सकते हैं।

ऐसा जपते हुए बेलपत्र पर चन्दन या अष्टगंध से राम-राम लिख कर शिव पर चढ़ाएं। पुत्र पाने कि इच्छा रखने वाले शिव भक्त मंदार पुष्प से ,घर में सुख शान्ति चाहने वाले धतूरे के पुष्प अथवा फल से शत्रुओं पर विजय पाने वाले अथवा मुकदमों में सफलता की इच्छा रखने वाले लोग भांग से शिव कि पूजा करे तो सभी तरह की पराजित संभावनाएं समाप्त हो जाएंगी। संपूर्ण कष्टों और पुनर्जन्मों से मुक्ति चाहने वाले मनुष्य गंगा जल और पंचामृत चढ़ाते हुए ॐ नमो भगवते रुद्राय। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नों रुद्रः प्रचोदयात। मंत्र को पढ़ते हुए सभी सामग्री जो भी यथा संभव हो उसे लेकर समर्पण भाव से शिव अर्पित करें। श्रद्धाभाव और विश्वास के साथ जो भी करेंगे महादेव आपकी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगे।

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