धर्म-अध्यात्म

श‍िवजी पर शंख से जल चढ़ाना वर्जित, श‍िवपुराण में ऐसी म‍िलती है कथा

Deepa Sahu
7 May 2021 10:05 AM GMT
श‍िवजी पर शंख से जल चढ़ाना वर्जित, श‍िवपुराण में ऐसी म‍िलती है कथा
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श‍िवजी को शंख से कभी न चढ़ाएं जल

सनातन धर्म में शंख को अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण माना गया है। यही वजह है क‍ि प्रत्‍येक पूजा में इसका प्रयोग क‍िया जाता है। देवी-देवताओं को इससे जल भी चढ़ाया जाता है। लेक‍िन भोलेनाथ की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं क‍िया जाता है। यही नहीं श‍िवजी को गलती से भी शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। श‍िवपुराण में इस बारे में पूरी जानकारी म‍िलती है। आइए जानते हैं…

शंख को लेक‍र म‍िलती है ऐसी कथा
शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक महापराक्रमी दैत्य था। शंखचूड़ दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं थी तब उसने संतान प्राप्ति के ल‍िए भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। उन्‍होंने दंभ से वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने तीनों लोकों के लिए अजेय महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। श्रीहरि तथास्‍तु कहकर अंतर्धान हो गए। इसके बाद दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा। शंखचूड़ ने पुष्कर में ब्रह्माजी को प्रसन्‍न करने के ल‍िए घोर तप क‍िया। तप से प्रसन्‍न होकर ब्रह्मदेव ने वर मांगने के लिए कहा। तब शंखचूड़ ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्ण कवच दिया।
भोलेनाथ ने इसल‍िए उठाया था यह कदम
शंखचूड़ की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर वर देने के बाद ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। फिर वे अंतर्धान हो गए। ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हुआ। वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड़ ने तीनों लोकों पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर श्रीहर‍ि से मदद मांगी। लेक‍िन उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था। इसलिए उन्‍होंने भोलेशंकर से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे।
तब क‍िया था श‍िव शंभू ने शंखचूड़ का वध
तब विष्णु ने ब्राह्मण रूप धारण करके दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया। इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। अब शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया। कहा जाता है उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। क्‍योंक‍ि शंखचूड़ विष्णु भक्त था इसलिए माता लक्ष्मी और श्रीहर‍ि को शंख का जल अत्‍यंत प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। लेक‍िन शिवजी ने उसका वध किया था तो शंख का जल शिव पूजा में न‍िषेध हो गया। यही वजह है क‍ि भोलेनाथ को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।
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