धर्म-अध्यात्म

Shiv Stotra: सावन के अंतिम प्रदोष पर करें ये सरल उपाय, भय होगी दूर

Tara Tandi
17 Aug 2024 9:05 AM GMT
Shiv Stotra: सावन के अंतिम प्रदोष पर करें ये सरल उपाय, भय होगी  दूर
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Shiv Stotra ज्योतिष न्यूज़: सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार आती है इस दिन भक्त भगवान शिव की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर उपवास भी रखते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से महादेव की कृपा बरसती है। पंचांग के अनुसार अभी सावन का महीना चल रहा है और इस माह का दूसरा व अंतिम प्रदोष व्रत आज यानी 17 अगस्त दिन शनिवार को रखा जा रहा है शनिवार के दिन प्रदोष पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जा रहा है ऐसे में इस दिन शनि और शिव की पूजा करना लाभकारी होगा।
सावन के आखिरी शनि प्रदोष पर पूजा पाठ करने से जातक के कष्टों का समाधान होता है साथ ही शनि और शिव की कृपा से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है ऐसे में शिव को प्रसन्न करने के लिए आप आज पूजा के दौरान शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ भक्ति भाव से करें ऐसा करने से सभी प्रकार के भय का नाश हो जाता है और इच्छा पूर्ति का आशीर्वाद मिलता है।
शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।।1।।
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।।
करालं महाकालकालं कृपालं ।
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ।।2।।
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।3।।
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।4।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।।
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।5।।
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।
न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।7।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।।8।।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।9।।
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