धर्म-अध्यात्म

इस दिन मनाई जाएगी शीतला अष्टमी, जानिए पूजन का शुभ मुहूर्त एवं व्रत विधि

Triveni
29 March 2021 3:04 AM GMT
इस दिन मनाई जाएगी शीतला अष्टमी, जानिए पूजन का शुभ मुहूर्त एवं व्रत विधि
x
शीतला अष्टमी हिन्दु ओं का एक त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन किये जाते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| शीतला अष्टमी (Sheetla Ashtami 2021) हिन्दु ओं का एक त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन किये जाते हैं. ये होली सम्पन्न होने के अगले सप्ताह में बाद करते हैं. प्रायः शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है. भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है. शीतला अष्टमी (Kab Hai Sheetla Ashtami) के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार कर लिया जाता है. अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से विख्यात है.

शीतला अष्टमी 2021 पूजा मुहूर्त
शीतला अष्टमी रविवार, अप्रैल 4, 2021 को
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – 06:08 ए एम से 06:41 पी एम
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04, 2021 को 04:12 ए एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05, 2021 को 02:59 ए एम बजे
व्रत विधि (Sheetla Ashtami Vrat Vidhi)
माता के प्रसाद के लिए एवं परिवार जनों के भोजन के लिए एक दिन पहले ही भोजन पकाया जाता है. माता को सफाई पसंद है, इसलिए सब कुछ साफ-सुथरा होना आवश्‍यक है. इस दिन प्रात: काल उठना चाहिए. स्नान करें. व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करें. पहले दिन बने हुए यानि बासी भोजन का भोग लगाएं. साथ ही शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत की कथा सुनें.
शीतला सप्तमी व्रत कथा
एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया व उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा. उस दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था. इसलिये पहले दिन ही भोजन पका लिया गया था. लेकिन दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान की प्राप्ति हुई थी कहीं बासी भोजन खाने से वे व उनकी संतान बिमार न हो जायें इसलिये बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा अर्चना के पश्चात पशओं के लिये बनाये गये भोजन के साथ अपने लिये भी रोट सेंक कर उनका चूरमा बनाकर खा लिया. जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने की कही तो काम का बहाना बनाकर टाल गई. उनके इस कृत्य से माता कुपित हो गई और उन दोनों के नवजात शिशु मृत मिले.
जब सास को पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया. दोनों अपने शिशु के शवों को लिये जा रही थी कि एक बरगद के पास रूक विश्राम के लिये ठहर गई. वहीं पर ओरी व शीतला नामक दो बहनें भी थी जो अपने सर में पड़ी जूंओं से बहुत परेशान थी. दोनों बहुओं को उन पर दया आयी और उनकी मदद की सर से जूंए कम हुई तो उन्हें कुछ चैन मिला और बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाये उन्होंने कहा कि हरी भरी गोद ही लुट गई है इस पर शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा.
बहुओं ने पहचान लिया कि साक्षात माता हैं तो चरणों में पड़ गई और क्षमा याचना की, माता को भी उनके पश्चाताप करने पर दया आयी और उनके मृत बालक जीवित हो गये. तब दोनों खुशी-खुशी गांव लौट आयी. इस चमत्कार को देखकर सब हैरान रह गये. इसके बाद पूरा गांव माता को मानने लगा.



Next Story