धर्म-अध्यात्म

Shardiya Navratri: आखिर क्यों मां स्कंदमाता को कहा जाता है कार्तिकेय?जाने आलोकिक कथा

Tara Tandi
7 Oct 2024 2:04 PM GMT
Shardiya Navratri: आखिर क्यों मां स्कंदमाता को कहा जाता है कार्तिकेय?जाने आलोकिक कथा
x
Shardiya Navratri राजस्थान न्यूज़: नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के इस रूप का अर्थ है भगवान कार्तिकेय की माता। दरअसल कार्तिकेय जी का एक नाम स्कंद भी है। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। दो हाथों में कमल है और एक हाथ से मां ने अपने पुत्र कार्तिकेय को पकड़ रखा है। तो वहीं उनका एक हाथ अभय मुद्रा में है। कहा जाता है कि मां के इस रूप की पूजा करने से सुख-संपदा की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं
स्कंदमाता की पूजा विधि, कथा,
आरती, मंत्र और भोग के बारे में।
स्कंदमाता की पूजा विधि
मां स्कंदमाता या पार्वती माता की मूर्ति, फोटो या मूर्ति को गंगा जल से पवित्र करें।
उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल, फल आदि अर्पित करें।
इसके बाद फलों और मिठाइयों का भोग लगाएं.
मां के सामने घी का दीपक जलाएं.
फिर माता के मंत्रों का जाप करें. फिर माता की कथा पढ़ें या सुनें।
अंत में अपनी कर पूजा पूरी करें।
नवरात्रि के पांचवें दिन का रंग
नवरात्रि के पांचवें दिन का शुभ रंग नीला है। कहा जाता है कि इस दिन नीले वस्त्र पहनकर स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए।
माँ स्कंदमाता की कथा
मां स्कंदमाता से जुड़ी प्राचीन कथा के अनुसार एक बार तारकासुर नाम के राक्षस का आतंक काफी बढ़ गया था. लेकिन कोई भी इस दानव को ख़त्म नहीं कर पाया. क्योंकि इस राक्षस का वध भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के हाथों ही संभव था। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ और उनके पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम कार्तिकेय रखा गया। तब माता पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद यानी भगवान कार्तिकेय को तारकासुर से युद्ध करने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंदमाता का रूप धारण किया। इसके बाद कार्तिकेय जी ने राक्षस तारकासुर का वध कर दिया।
माँ स्कंदमाता का स्वरूप
मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। उनकी गोद में भगवान स्कंद यानि भगवान कार्तिकेय विराजमान हैं। कमल के फूल की मुद्रा के कारण इसे पद्मासन भी कहा जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से स्कंदमाता की पूजा करता है उसके ज्ञान में वृद्धि होती है। माता सिंघा यानि शेर की सवारी।
माँ स्कंदमाता पूजा का महत्व
मां स्कंदमाता की पूजा करने से व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है। कहा जाता है कि जिस भी भक्त को संतान नहीं है उसे भी नवरात्रि के पांचवें दिन का व्रत रखना चाहिए। मान्यता है कि मां स्कंदमाता की पूजा से सूनी गोद जल्दी भर जाती हैं।
Next Story