धर्म-अध्यात्म

Sharad Purnima Vrat Katha: शरद पूर्णिमा पर पूजा के दौरान पढ़ें ये कथा, बनी रहेगी मां लक्ष्मी की कृपा

Bharti Sahu 2
16 Oct 2024 1:15 AM GMT
Sharad Purnima Vrat Katha: शरद पूर्णिमा पर पूजा के दौरान पढ़ें ये कथा, बनी रहेगी मां लक्ष्मी की कृपा
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Sharad Purnima Vrat Katha: शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म की सबसे शुभ तिथि के रूप में जानी जाती है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं में होता है और उसकी किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इस लिहाज से यह दिन बेहद खास माना जाता है। लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु-मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। हम आपको बता रहे हैं कि शरद पूर्णिमा पर आपको क्या करना चाहिए और इस दिन व्रत रखने का क्या महत्व है साथ ही कथा भी
शरद पूर्णिमा का महत्व: ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन अगर रात के वक्त चंद्रमा के नीचे खड़े होकर खीर का सेवन किया जाए तो इससे इंसान को लंबी उम्र और अच्छी सेहत मिलती है. इसके कई सारे फायदे हैं. मान्यता ये है कि शरद पूर्णिमा के दिन चांद 16 कलाओं में विद्दमान होता है. और इसका सकारात्मक प्रभाव इंसान पर पड़ता है. इसलिए इस दिन की विशेष महत्ता है|
शरद पूर्णिमा की कथा
कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहुकार रहा करता था. उसकी दो पुत्रियां थीं. दोनों ही पुत्री विधिपूर्वक पूर्णिमा का उपवास
रखती थीं. लेकिन
साहुकार की छोटी बेटी उपवास को अधूरा छोड़ देती थी. जबकी बड़ी बेटी की बात करें तो वो हमेशा पूरी लगन और श्रद्धा से इस व्रत का पालन करती थी. जब दोनों बड़ी हो गईं तो उनके पिता ने दोनों का विवाह कर दिया. शादी के बाद भी बड़ी वाली बेटी पूरी आस्था से उपवास रखती थी. इस व्रत का प्रभाव ऐसा था कि इसका उसे लाभ भी मिला. उसे बहुत ही सुंदर और स्वस्थ संतान मिली. वहीं छोटी बेटी को संतान प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. वो तो काफी परेशान हुई साहूकार भी इस बात से चिंतित रहने लगा. इसके बाद साहूकार ने ब्राह्मणों को बुलाकर बिटिया की समस्या बताई.पंडितों ने मामले की गंभीरता का पता लगाया और साहूकार से कहा कि आपकी छोटी बेटी ने पूर्णिमा के व्रत का नियम पालन सच्चे मन से नहीं किया इसलिए इसके साथ ऐसा हो रहा है. ब्राह्मणों ने उसे इस व्रत की विधि बताई जिसके बाद उसने पूरे विधि-विधान से फिर से व्रत रखा. इस बार छोटी बेटी की आस्था रंग लाई और उसे संतान हुई. लेकिन संतान जन्म के कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकी और उसका निधन हो गया. ये देख छोटी बेटी और भी विचलित और मायूस हो गई.
तब उसने अपनी मृत संतान को पीढ़े पर लेटाया और उसे कपड़े से ढंक दिया. उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसने अपनी बड़ी बहन को बैठने के लिये वही पीढ़ा दिया जिसपर उसकी मृत संतान थी. बड़ी बहन जैसे ही पीढ़े पर बैठने लगी तो रहस्यमयी तरीके से कपड़े के छूते ही बच्चे के रोने की आवाज आई. बड़ी बहन आश्चर्य में पड़ी कि तू अपनी ही संतान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाह रही थी. तब छोटी बहन ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था लेकिन आपके प्रताप और स्पर्श से इसके प्राण वापस आ गए. इसी दिन के बाद से शरद पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व हर तरफ फैल गय|
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