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धर्म-अध्यात्म
17 मई को मनाया जाएगा शंकराचार्य जयंती, जानें इसकी कहानी
Tara Tandi
16 May 2021 2:27 PM GMT
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17 मई, सोमवार को आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ था
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 17 मई, सोमवार को आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ था। आदिगुरु शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के केरल राज्य में नम्बूदरी ब्राह्राण के यहां हुआ था। इनके जन्म के कुछ वर्षों बाद ही इनके पिता का निधन हो गया। माना जाता है गुरु शंकराचार्य ने बहुत ही अल्पआयु में वेदों को कंठस्थ कर इसमें महारथ हासिल कर लिया था। आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ बातों के बारे में...
वैशाख शुक्ल पंचमी को हिंदू धर्म की ध्वजा को देश के चारों कोनों में फहराने वाले और भगवान शिव के अवतार आदि शंकराचार्य ने जन्म लिया था। हिंदू धर्म की पुर्नस्थापना करने वाले आदि शंकराचार्य का जन्म लगभग 1200 वर्ष पूर्व कोचीन से 5-6 मील दूर कालटी नामक गांव में नंबूदरी ब्राह्राण परिवार में जन्म हुआ था। वर्तमान में इसी कुल के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल होते हैं। इसके अलावा ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं। आदि शंकराचार्य बचपन में ही बहुत प्रतिभाशाली बालक थे।
आदि शंकराचार्य के जन्म से जुड़ी कथा
ब्राह्राण दंपति के विवाह होने के कई साल बाद भी कोई संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठिन तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने सपने में उनको दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा।इसके बाद ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर से ऐसी संतान की कामना की जो दीर्घायु भी हो और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैले। तब भगवान शिव ने कहा कि या तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो सकती है या फिर सर्वज्ञ, जो दीर्घायु होगा वो सर्वज्ञ नहीं होगा और अगर सर्वज्ञ संतान चाहते हो तो वह दीर्घायु नहीं होगी। तब ब्राह्राण दंपति ने वरदान के रूप में दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ संतान की कामना की।
वरदान देने के बाद भगवान शिव ने ब्राह्राण दंपति के यहां संतान रूप में जन्म लिया। वरदान के कारण ब्राह्राण दंपति ने पुत्र का नाम शंकर रखा। शंकराचार्य बचपन से प्रतिभा सम्पन्न बालक थे। जब वह मात्र तीन साल के थे तब पिता का देहांत हो गया। तीन साल की उम्र में ही उन्हें मलयालम का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
कम उम्र में ही वेदों का ज्ञान
कम उम्र में उन्हें वेदों का पूरा ज्ञान हो गया था और 12 वर्ष की उम्र में शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था। 16 वर्ष की अवस्था में 100 से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। बाद में माता की आज्ञा से वैराग्य धारण कर लिया था। मात्र 32 साल की उम्र में केदारनाथ में उन्होंने समाधि ले ली। आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी जिसे आज शंकराचार्य पीठ कहा जाता है।
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