धर्म-अध्यात्म

शन‍िदेव हो जाते हैं पीपल की पूजा से प्रसन्‍न, जानें रोचक कथा

Deepa Sahu
27 Feb 2021 3:42 AM GMT
शन‍िदेव हो जाते हैं पीपल की पूजा से प्रसन्‍न, जानें रोचक कथा
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शनिवार के दिन आपने देखा होगा बड़ी संख्या में श्रद्धालु पीपल की पूजा कर रहे होते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : शनिवार के दिन आपने देखा होगा बड़ी संख्या में श्रद्धालु पीपल की पूजा कर रहे होते हैं। लोग पीपल को जल देते हैं, दीप दिखाते हैं, काले तिल और गुड़ भी अर्पित करते हैं। दरअसल पीपल को हिंदू धर्म में पूजनीय और आदरणीय कहा गया है। शास्त्रों में अनुसार पीपल में सभी देवों और पितरों का वास होता है। शनिवार और अमावस्या के दिन इस पर शनि महाराज का वास होता है। इसलिए शनिवार के दिन इनकी पूजा विशेष फलदायी होती है। इस संदर्भ में कुछ पौराणिक कथाएं भी हैं, आइए जानें शनिवार को पीपल की पूजा करने का रहस्य रोचक कथाओं से….

श्रीमद्भगवदगीता में भी म‍िलता है उल्‍लेख
पीपल को लेकर श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:। अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूं। इससे भी इस वृक्ष की महत्‍ता पता चलती है। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। इसलिए पीपल को पूजनीय पेड़ माना जाता है।
इसल‍िए पीपल की पूजा से प्रसन्‍न होते हैं शनिदेव
मान्‍यता है क‍ि पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जिन जातकों की कुंडली में शनि दोष होता है। उन्हें इसके कुप्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। इसे लेकर पौराणिक कथाएं भी म‍िलती हैं। पहली कथा के अनुसार एक समय स्वर्ग पर असुरों ने कब्जा कर लिया था। कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोड़ने पेड़ के पास जाता, तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषियों को समझ ही नहीं आ रहा था क‍ि आख‍िर ब्राह्मण कुमार कहां गायब होते जा रहे हैं।
ऋषियों ने मांगी तब शन‍िदेव से सहायता
ब्राह्मण कुमारों के वापस न लौटने पर ऋषियों ने शनिदेव से सहायता मांगी। इस पर शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए। कैटभ ने शनि महाराज को पकड़ने की कोशिश की, तो शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया। तब शनि महाराज ने ऋषियों को कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
ऋषि पिप्लाद से जुड़ी है एक और कथा

एक अन्‍य पौराण‍िक कथा के अनुसार ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। बड़े होने इन्हें पता चला कि शनि की दशा के कारण ही इनके माता-पिता को मृत्यु का सामना करना पड़ा। इससे क्रोधित होकर पिप्लाद ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया। इससे प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी ने उनसे वर मांगने को कहा, तो पिप्लाद ने ब्रह्मदंड मांगा और पीपल के पेड़ में बैठे शनिदेव पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैर टूट गए।
तब शन‍िदेव ने पुकारा भोलेनाथ को
शनिदेव दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे। भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। तभी से शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।
पीपल को इसल‍िए मानते हैं पूज्‍य
यूं तो सभी वृक्ष दिन के समय में सूर्य की रोशनी में कार्बन डाइआक्साइड ग्रहण करके अपने लिए भोजन बनाते हैं। वहीं, रात को सभी वृक्ष ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन-डाइआक्साइड छोड़ते हैं। यही वजह है क‍ि रात के समय में पेड़ों के नीचे सोने से मना किया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पीपल का पेड़ 24 घंटों में सदा ही आक्सीजन छोड़ता है इसलिए यह मानव उपकारी पेड़ है। यही वजह है क‍ि पीपल को पूज्य मानकर सदियों से उसकी पूजा होती चली आ रही है। साथ ही शन‍िदेव को प्रसन्‍न करने के पीछे पौराण‍िक कारणों से भी पीपल की पूजा का व‍िधान है।
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