धर्म-अध्यात्म

Shani Dev Ki Stuti: शनिदेव की कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार को करें ये स्तुति का पाठ

Rani Sahu
22 Oct 2021 2:41 PM GMT
Shani Dev Ki Stuti: शनिदेव की कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार को करें ये स्तुति का पाठ
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हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शनिवार का दिन कर्मफल दाता भगवान शनि को समर्पित किया गया है

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शनिवार का दिन कर्मफल दाता भगवान शनि को समर्पित किया गया है। शनिदेव व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुरूप ही फल प्रदान करते हैं। लेकिन यदि शनिदेव किसी से नाराज हो जाएं तो उनकी कुदृष्टि से जीवन नर्क के समान हो जाता है। हर तरफ मुसीबत के बादल दिखाई देने लगते हैं। इसीलिए शनि के प्रकोप से बचने के व्यक्ति तरह - तरह के उपाय करता है। शनि के प्रकोप से मनुष्य क्या, देव और दानव भी नहीं बच सकते हैं। लेकिन जीवन में शनि की दशा सही होने पर किसी भी तरह का कष्ट नहीं होता है। आइये जानते हैं भगवान शनि को प्रसन्न करने के कुछ ऐसे उपाय, जिनको नियमित रूप से करने पर आपको जीवन में कभी भी शनिदेव की कुदृष्टी का सामना नहीं करना पड़ेगा....

1-शनिवार के दिन शनि यंत्र की स्थापना करके प्रतिदिन इसकी विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। इस यंत्र के सामने हर दिन सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
2. प्रत्येक शनिवार को शाम के समय पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे भगवान शनिदेव भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं।
3. शनि महाराज को खुश करने के लिए शमी वृक्ष को घर में लगाएं इससे शनिदेव का कृपा होगी। मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।
4. हर शनिवार के दिन काले कुत्तों को रोटी खिलाएं। काले वस्तुओं का दान करें। भगवान शनि को काला रंग बहुत पंसद हैं।
5.शनिवार के दिन किसी शनि मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जला कर शनिदेव की स्तुति का पाठ करना चाहिए।
शनि देव की स्तुति
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च।
नम: कालाग्रिरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥
नमो निर्मासदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो: विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुन:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदष्ट्रं नमोस्तुते॥
नमस्ते कोटरक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेस्तु भास्करेअभयदाय च॥
अधोदृष्टे नमस्तेस्तु संवर्तक नमोस्तुते।
नमो मंदगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोस्तुते॥
ज्ञान चक्षुर्नमस्तेस्तु कश्पात्मजसूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरिस तत्क्षणात्‌॥


Rani Sahu

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