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धर्म-अध्यात्म
Shani Dev: शनि की साढ़ेसाती से पाए छुटकारा, तो मंगलवार को ऐसे करें शनि देव को प्रसन्न
Tulsi Rao
27 Sep 2021 12:32 PM GMT
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शनि की दृष्टि को अनिष्टकारी माना गया है. ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को एक क्रूर ग्रह बताया गया है. इसलिए शनि को शांत रखने की सलाह दी जा जाती है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Shani Dev: शनि की दृष्टि को अनिष्टकारी माना गया है. ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को एक क्रूर ग्रह बताया गया है. इसलिए शनि को शांत रखने की सलाह दी जा जाती है. वैसे तो शनिवार का दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए उत्तम माना गया है, लेकिन मंगलवार को भी पूजा करने से शनि देव की अशुभता दूर होती है, यानि मंगलवार की पूजा से भी शनि देव शांत होते हैं.
28 सितंबर 2021 को मंगलवार का दिन है. पंचांग के अनुसार इस दिन आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि है. इस दिन चंद्रमा वृष से मिथुन राशि में प्रवेश कर रहा है. चंद्रमा मंगलवार को प्रात: 07 बजकर 15 मिनट के बाद मिथुन राशि में प्रवेश करेगा. चंद्रमा के राशि परिवर्तन से वृषभ राशि में बना ग्रहण योग भी समाप्त हो रहा है. ग्रहण को ज्योतिष शास्त्र में शुभ नहीं माना गया है. ग्रहण राहु और केतु से निर्मित होता है. राहु और केतु को पाप ग्रह माना गया है. जब ये ग्रह चंद्रमा को अपने प्रभाव में लेते हैं तो ग्रहण योग की स्थिति बनती है.
-हनुमान जी की पूजा से शांत होते हैं शनि देव
मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है. हनुमान भक्तों को शनि देव परेशान नहीं करते हैं. शनि देव से हनुमान जी ने वचन लिया हुआ है. इसीलिए जो लोग हनुमान जी की पूजा करते हैं, उन्हें शनि देव परेशान नहीं करते हैं. इसलिए मंगलवार के दिन हनुमान जी की विधि पूर्वक पूजा करने से हनुमान जी के साथ साथ, शनि देव भी प्रसन्न होते हैं.
इन राशियों के लिए बन रहा है विशेष संयोग
वर्तमान समय में तीन राशियों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है. साढ़ेसाती के दौरान व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. माना जाता है कि शनि जब अशुभ होते हैं तो व्यक्ति को साढ़ेसाती के दौरान धन की हानि, रोग, कार्यों में बाधा, दांपत्य जीवन में तनाव और तलाक की भी स्थिति बना देते हैं. इस समय धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है.
शनि देव को प्रसन्न करने के प्रभावशाली मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
ॐ शं शनैश्चराय नमः।
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।
ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
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