धर्म-अध्यात्म

Shani Amavasya 2021 : शनि अमावस्‍या पर जानें कैसे हुआ शनिदेव का जन्म

Rani Sahu
10 July 2021 9:09 AM GMT
Shani Amavasya 2021 : शनि अमावस्‍या पर जानें कैसे हुआ शनिदेव का जन्म
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अक्सर शनिदेव का नाम सुनते ही लोगों के चेहरे पर डर और दहशत नजर आने लगती है

अक्सर शनिदेव का नाम सुनते ही लोगों के चेहरे पर डर और दहशत नजर आने लगती है। लोग शनि का जिक्र होते ही उनके प्रकोप को सोचकर खौफ खाने लग जाते हैं। कुल मिलाकर शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है, लेकिन असल में ऐसा है नहीं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि न्यायधीश (न्याय के देवता) या कहें दंडाधिकारी की भूमिका का निर्वहन करते हैं। वह अच्छे का परिणाम अच्छा और बुरे का बुरा देने वाले ग्रह हैं। अगर कोई शनिदेव के कोप का शिकार है तो रूठे हुए शनिदेव को मनाया भी जा सकता है। शनि अमावस्या का दिन इसके लिए सबसे उत्तम माना गया है।

कैसे हुआ शनिदेव का जन्म
शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में जो कथा मिलती वह कुछ इस प्रकार है। राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था, जिसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी। वह सोचा करती कि किसी तरह तपादि से सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा। जैसे तैसे दिन बीतते गये संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानों ने जन्म लिया।
सूर्य के तेज से बचने के लिए निकाली युक्ति
संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थी फिर एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्यदेव के तेज को कम करेंगी लेकिन बच्चों के पालन और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे इसके लिये उन्होंने एक युक्ति निकाली उन्होंने अपने तप से अपनी हमशक्ल को पैदा किया जिसका नाम संवर्णा रखा। संज्ञा ने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी अपनी छाया संवर्णा को दी और वहां से चलकर पिता के घर पंहुची। जब पिता ने संज्ञा को इसके लिए फटकार लगाई तो वह वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई।
छाया से हुआ तीन संतानों का जन्म
उधर संवर्णा अपने धर्म का पालन करती रही उसे छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।
शनिदेव की टेढ़ी दृष्टि का राज
ब्रह्मपुराण के अनुसार शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। जब शनिदेव जवान हुए तो चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह हुआ। शनिदेव की पत्नी सती, साध्वी और परम तेजस्विनी थी, लेकिन शनिदेव भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में इतना लीन रहते कि अपनी पत्नी को जैसे उन्होंनें भुला ही दिया था। एक रात ऋतु स्नान कर संतान प्राप्ति की इच्छा लिये वह शनि के पास आईं लेकिन शनि देव हमेशा कि तरह भक्ति में लीन थे। वे प्रतीक्षा कर-कर के थक गई और उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया।
आवेश में आकर उन्होंने शनि देव को श्राप दे दिया कि जिस पर भी उनकी नजर पड़ेगी वह नष्ट हो जायेगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने पत्नी को मनाने की कोशिश की उन्हें भी अपनी गलती का अहसास हुआ लेकिन तीर कमान से छूट चुका था जो वापस नहीं आ सकता था। अपने श्राप के प्रतिकार की ताकत उनमें नहीं थी। उसके बाद से शनिदेव अपना सिर नीचे करके रहने लगे।


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