धर्म-अध्यात्म

Sawan कुंवारी कन्याएं इन नियमों के साथ करें शिव पूजा, होगी मनचाहे वर की प्राप्ति

Tara Tandi
29 July 2024 9:24 AM GMT
Sawan  कुंवारी कन्याएं इन नियमों के साथ करें शिव पूजा, होगी मनचाहे वर की प्राप्ति
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Sawan ज्योतिष न्यूज़ : हिंदू पंचांग के अनुसार आज यानी 29 जुलाई को सावन माह का दूसरा सोमवार है जो कि शिव पूजा के लिए उत्तम माना गया है इस दिन भक्त उपवास आदि रखते हुए भगवान शिव की भक्ति करते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है लेकिन इसी के साथ ही अगर सावन सोमवार के दिन शिव पूजा पूरे नियमों के साथ की जाए तो कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है और शादीशुदा महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है तो आज हम आपको सावन सोमवार के दिन शिव पूजा से जुड़े नियम व अन्य जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
सावन सोमवार पूजा विधि—
आपको बता दें कि सावन सोमवार के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण कर पूजा स्थल की साफ सफाई करें और पूजा अनुष्ठान शुरु करें। भगवान शिव के समक्ष व्रत करने का संकल्प करें किसी मंदिर में जाकर शिवलिंग की विधिवत पूजा करें पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक करें भगवान को सफेद चंदन, भस्म का तिलक लगाएं अब देसी घी का दीपक जलाएं। सफेद फूलों की माला और पुष्प प्रभु को अर्पित करें इसके बाद शिव जी का आह्वान करने के लिए वैदिक मंत्रों का जाप करें अगर आप चाहें तो इस दिन महादेव को प्रसन्न करने के लिए ध्यान कर सकते हैं।
सावन सोमवार पर भगवान शिव को ठंडई, लस्सी, खीर और भांग के पकौड़े का भोग अर्पित करें अब शिव जी की विधिवत आरती करें और भूल चूक के लिए प्रभु से क्षमा मांगे। अंत में अपनी मनोकामनाएं भगवान भोलेनाथ से कहें और अगले दिन शिव प्रसाद को ग्रहण करके अपना व्रत खोलें। लेकिन भूलकर भी व्रत तामसिक चीजों का सेवन कर नहीं खोलना चाहिए।
भगवान शिव के पूजा मंत्र—
1. ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
2. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!
3. ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रां वतंसं। रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।। पद्मासीनं समंतात् स्तुततममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं। विश्वाद्यं विश्वबद्यं निखिलभय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
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