धर्म-अध्यात्म

Sawan 2021 : भोलेनाथ का यह महामंत्र जपते ही दूर होते हैं सभी दु:ख, बनने लगते हैं बिगड़े काम

Kunti Dhruw
29 July 2021 5:02 PM GMT
Sawan 2021 : भोलेनाथ का यह महामंत्र जपते ही दूर होते हैं सभी दु:ख, बनने लगते हैं बिगड़े काम
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सनातन परंपरा में किसी भी देवी–देवता की कृपा पाने के लिए कई प्रकार की पूजा विधि बताई गई है.

सनातन परंपरा में किसी भी देवी–देवता की कृपा पाने के लिए कई प्रकार की पूजा विधि बताई गई है. इनमें मंत्र जप बहुत ज्यादा प्रभावशाली माना गया है. मान्यता है कि कलयुग में मंत्रों के जाप करने से ईश्वर की तुरंत कृपा प्राप्त होती है. यदि आप शिव के भक्त हैं और प्रतिदिन शिव की साधना करते हैं तो आप शिव से जुड़े मंत्रों का जप करके अपने जीवन से जुड़े तमाम तरह के दु:खों को दूर कर सकते हैं. आइए जानते हैं औढरदानी भगवान भोलेनाथ से जुड़े वो ​चमत्कारी मंत्र जिसे जपते ही भगवान शिव की कृपा बरसने लगती है –

कारोबार में वृद्धि के लिए
यदि कोरोना काल में आपका कारोबार मंदा पड़ गया हो, काम–धंधे में तमाम तरह की बाधाएं आ रही हों और उसमें चाह कर भी मन न लगता हो तो आपको उसे पटरी पर लाने के लिए आपको श्रावण में शिव साधना का यह प्रयोग जरूर करना चाहिए. व्यवसाय में लाभ पाने के लिए कपाली कुटिका को नीचे दिये गये मंत्र को कम से कम 51 बार जपकर अपने व्यवसायिक स्थल पर धन रखने वाले स्थान पर रखें.
विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।
श्रेय:प्राप्तिनिमित्ताय नम: सोमाद्र्धधारिणे।।'
राजनीति में सफलता के लिए
यदि आप राजनीति के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और आपको किसी बड़े पद या लाभ का इंतजार है तो आपको इस श्रावण मास में भगवान शिव की साधना जरूर करनी चाहिए. राजनीति में सफलता पाने के लिए सावन के महीने में त्रिपुरारी माला का विधि–विधान से पूजन एवं नीचे दिये गये मंत्र से अभिमंत्रित करके उसे धारण करें.
'ॐ देवाधिदेव देवेश सर्वप्राणभूतां वर।
प्राणिनामपि नाथस्त्वं मृत्युंजय नमोस्तुते।।'
ऊपरी बाधा और नजर दोष दूर करने के लिए
यदि आपको लगता है कि आपके किसी विरोधी ने आपके ऊपर तंत्र–मंत्र जैसी चीज करवा दी है या फिर आप नजर दोष के शिकार हो गये हैं और आपको हमेशा मानसिक एवं शारीरिक कष्ट बना रहता है तो आपको इससे उबरने के लिए सावन के महीने में शिवगौरी यंत्र का विधि–विधान से पूजन करके नीचे दिये गये रुद्राष्टकम् के इस मंत्र का जरूर पाठ करना चाहिए.
'प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्।'
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