धर्म-अध्यात्म

6 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या, जानिए महत्व और कैसे करना चाहिए पितरों का श्राद्ध

Shiddhant Shriwas
29 Sep 2021 2:28 AM GMT
6 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या, जानिए महत्व और कैसे करना चाहिए पितरों का श्राद्ध
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शास्त्रों में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानि अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किये जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शास्त्रों में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानि अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किये जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। सबसे अहम तो यह तिथि इसीलिए है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। 25 तत्वों में से 17 सूक्ष्म तत्व शरीर में रहते हैं। मान्यता है कि हमारे शरीर से मरते समय क्रमश: प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान आदि पांच तरह की वायु निकल जाती हैं। बचे हुए स्थूल शरीर को अग्नि में जला दिया जाता है और सूक्ष्म शरीरधारी आत्मा परलोक चली जाती है जिसे हम पितर कहते हैं। इसलिए वेद-शास्त्रों में मृतक का श्राद्ध में पिंडदान आदि का विधान है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष से लेकर अमावस्या तक जिस भी तिथि को मृत्यु हुई हो उस दिन श्राद्ध करने का विधान है। सर्वपितृ अमावस्या को सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने का विधान है।

श्राद्ध रूप में दिया गया भोजन पितरों को स्वधा रूप में मिलता है। पितरों को अर्पित भोजन उस रूप में परिवर्तित हो जाता है जिस रूप में उनका जन्म हुआ हो। यदि हमारे पितर देव योनि में हों तो श्राद्ध का भोजन अमृत रूप में उन तक पहुंचता है। यदि मनुष्य योनि में हो तो अन्न रूप में उन्हें भोजन मिलता है, पशु योनि में घास के रूप में, नाग योनि में वायु रूप में और यक्ष योनि में पान रूप में भोजन उन तक पहुंचाया जाता है। श्राद्ध में पूजन के समय तिल, चावल, हल्दी आदि का विधान है। वंश परंपरा रूपी धागे का विच्छेद नहीं होना चाहिए, वह निरंतर बढ़ता रहना चाहिए। इसलिए श्राद्ध के दिनों में पितरों का आशीर्वाद लिया जाता है। विच्छेद होने पर वंश नष्ट हो जाते हैं।

श्राद्ध किसे कहते हैं?

श्राद्ध का अर्थ है, श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जो इस समय जीवित नहीं है उनका आभार प्रकट करना। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष के दौरान ऐसे परिजन जो अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं, उनकी आत्मा के तृप्ति के लिए उन्हें तर्पण दिया जाता है, इसे ही श्राद्ध कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पितृपक्ष में मृत्यु के देवता यमराज इन जीवों को कुछ समय के लिए मुक्त कर देते हैं, ताकि ये धरती पर जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।

कौन कहलाते हैं पितर

ऐसे व्यक्ति जो इस धरती पर जन्म लेने के बाद जीवित नहीं है उन्हें पितर कहते हैं। मर चुके विवाहित या अविवाहित, बच्चा या बुजुर्ग, स्त्री या पुरुष को पितर कहा जाता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए भाद्रपद महीने के पितृपक्ष में उनको तर्पण दिया जाता है। पितर पक्ष समाप्त होते ही परिजनों को आशीर्वाद देते हुए पितरगण वापस मृत्युलोक चले जाते हैं।

पितृपक्ष में कैसे करें श्राद्ध

श्राद्ध पक्ष के दिनों में पूजा और तर्पण करें। पितरों के लिए बनाए गए भोजन के चार ग्रास निकाल उसमें से एक हिस्सा गाय, दूसरा हिस्सा कुत्ते, तीसरा हिस्सा कौए और एक हिस्सा अतिथि के लिए रख दें। गाय, कुत्ते और कौए को भोजन देने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। पितृपक्ष के आखिरी दिन पिंडदान और तर्पण की क्रिया के बाद गरीब ब्राह्मणों को अपनी यथाशक्ति अनुसार दान देने से भी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार दो, पांच अथवा सोलह दीप भी प्रज्जवलित करने चाहिए।

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