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पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी (Saphala Ekadashi 2021) के नाम से जाना जाता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी (Saphala Ekadashi 2021) के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. यह एकादशी कल्याण करने वाली है. इस बार 30 दिसंबर 2021 को सफला एकादशी मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यता के अनुसार, गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने सफला एकादशी तिथि को अपने ही समान बलशाली बताया है Saphala Ekadashi 2021: जब देवी लक्ष्मी की वजह से रो पड़े थे भगवान विष्णु, जानें पूरी कहानी
सफला एकादशी 2021 मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ – 29 दिसंबर 2021 को दोपहर 04 बजकर 12 मिनट से.
एकादशी तिथि समाप्त – 30 दिसंबर 2021 को दोपहर 01 बजकर 40 मिनट तक.
31वाँ दिसम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 07:14 ए एम से 09:18 ए एम Saphala Ekadashi 2021: सफला एकादशी के दिन करें ये काम, मिलेगा भगवान विष्णु का खास आशीर्वाद
सफला एकादशी का महत्व
पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले- बड़े-बड़े यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है. इसलिए एकादशी-व्रत अवश्य करना चाहिए. पौषमास के कृष्णपक्ष में सफला नाम की एकादशी होती है. इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. यह एकादशी कल्याण करने वाली है. एकादशी समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है. इस व्रत से स्वास्थ्य और लंबी आयु का वरदान पाया जा सकता है. Also Read - Saphala Ekadashi 2021: सफला एकादशी के दिन भूलकर भी ना करें ये काम, ये हैं इस व्रत से जुड़े नियम
सफला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, चम्पावती नगर का राजा महिष्मत था. उसके पांच पुत्र थे. महिष्मत का बड़ा बेटा लुम्भक हमेशा बुरे कामों में लगा रहता था. उसकी इस प्रकार की हरकतें देख महिष्मत ने उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया. लुम्भक वन में चला गया और चोरी करने लगा. एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया किन्तु जब उसने अपने को राजा महिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया. फिर वह वन में लौट आया और वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा. वह एक पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे रहता था. एक बार अंजाने में ही उसने पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत कर लिया. उसने पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा.
सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया. एकादशी के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा. दोपहर होने पर उसे होश आया. उठकर वह वन में गया और बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्य अस्त हो चुका था. तब उसने पीपल के वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा- इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों. ऐसा कहकर लुम्भक रातभर सोया नहीं. इस प्रकार अनायास ही उसने सफला एकादशी व्रत का पालन कर लिया. उसी समय आकाशवाणी हुई -राजकुमार लुम्भक! सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे. आकाशवाणी के बाद लुम्भक का रूप दिव्य हो गया. तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी. उसने पंद्रह वर्षों तक सफलतापूर्वक राज्य का संचालन किया. उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ. जब वह बड़ा हुआ तो लुम्भक ने राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रम गया. अंत में सफला एकादशी के व्रत के प्रभाव से उसने विष्णुलोक को प्राप्त किया.
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