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धर्म-अध्यात्म
संतोषी माता व्रत कथा: शुक्रवार को जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, घर में धन की कमी होगी दूर
Bharti Sahu 2
20 Sep 2024 1:19 AM GMT
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संतोषी माता व्रत कथा: माना जाता है. जो भी व्यक्ति शुक्रवार का व्रत करता है उसे जरूर मां संतोषी की व्रत कथा पढ़नी और सुननी चाहिए. ऐसा करने से मां संतोषी प्रसन्न होती है और अपने भक्तों की सभी कष्टों से रक्षा करती हैं|
मां संतोषी व्रत कथा Santoshi Mata Vrat Katha
कथा के अनुसार, एक बुढ़िया के सात पुत्र थे. उनमें से 6 कमाते थे और एक बेरोजगार था. वो अपने 6 बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को बाद में उनकी थाली की बची हुई जूठन खिला दिया करती. सातवें बेटे की पत्नी इस बात से बड़ी दुखी थी क्योंकि वह बहुत भोला था और ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता था|
एक दिन बहू ने जूठा खिलाने की बात अपने पति से कही पति ने सिरदर्द का बहाना कर, रसोई में लेटकर स्वयं सच्चाई देख ली. उसने उसी क्षण दूसरे राज्य जाने का निश्चय किया. जब वह जाने लगा, तो पत्नी ने उसकी निशानी मांगी. पत्नी को अंगूठी देकर वह चल पड़ा. दूसरे राज्य पहुंचते ही उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और जल्दी ही उसने मेहनत से अपनी जगह बना ली|
इधर, बेटे के घर से चले जाने पर सास-ससुर बहू पर अत्याचार करने लगे. घर का सारा काम करवा के उसे लकड़ियां लाने जंगल भेज देते और आने पर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी रख देते. इस तरह अपार कष्ट में बहू के दिन कट रहे थे. एक दिन लकड़ियां लाते समय रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और पूजा विधि पूछी. उनसे सुने अनुसार बहू ने भी कुछ लकड़ियां बेच दीं और सवा रुपए का गुड़-चना लेकर संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया|
दो शुक्रवार बीतते ही उसके पति का पता और पैसे दोनों आ गए. बहू ने मंदिर जाकर माता से फरियाद की कि उसके पति को वापस ला दे. उसको वरदान दे माता संतोषी ने स्वप्न में बेटे को दर्शन दिए और बहू का दुखड़ा सुनाया. इसके साथ ही उसके काम को पूरा कर घर जाने का संकल्प कराया. माता के आशीर्वाद से दूसरे दिन ही बेटे का सब लेन-देन का काम-काज निपट गया और वह कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा|
वहीं बहू रोज लकड़ियां बीनकर माताजी के मंदिर में दर्शन कर अपने सुख-दुख कहा करती थी. एक दिन माता ने उसे ज्ञान दिया कि आज मेरा पति लौटने वाला है. तुम नदी किनारे थोड़ी लकड़ियां रख देना और देर से घर जाकर आंगन से ही आवाज लगाना कि सासू मां, लकड़ियां ले लो और भूसे की रोटी दे दो, नारियल के खोल में पानी दे दो. बहू ने ऐसा ही किया. उसने नदी किनारे जो लकड़ियां रखें, उसे देख बेटे को भूख लगी और वह रोटी बना-खाकर घर चला|
घर पर मां द्वारा भोजन का पूछने पर उसने मना कर दिया और अपनी पत्नी के बारे में पूछा. तभी बहू आकर आवाज लगाकर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी मांगने लगी. बेटे के सामने सास झूठ बोलने लगी कि रोज चार बार खाती है, आज तुझे देखकर नाटक कर रही है. यह सारा दृश्य देख बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा
शुक्रवार आने पर पत्नी ने उद्यापन की इच्छा जताई और पति की आज्ञा पाकर अपने जेठ के लड़कों को निमंत्रण दे आई. जेठानी को पता था कि शुक्रवार के व्रत में खट्टा खाने की मनाही है. उसने अपने बच्चों को सिखाकर भेजा कि खटाई जरूर मांगना. बच्चों ने भरपेट खीर खाई और फिर खटाई की रट लगाकर बैठ गए. ना देने पर चाची से रुपए मांगे और इमली खरीद कर खा ली. इससे संतोषी माता नाराज हो गई और बहू के पति को राजा के सैनिक पकड़कर ले गए|
बहू ने मंदिर जाकर माफी मांगी और वापस उद्यापन का संकल्प लिया. इसके साथ ही उसका पति राजा के यहां से छूटकर घर आ गया. अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बच्चों को भोजन करने बुलाया और दक्षिणा में पैसे न देकर एक- एक फल दिया. इससे संतोषी माता प्रसन्न हुईं और जल्दी ही बहू को एक सुंदर से पुत्र की प्राप्ति हुई. बहू को देखकर पूरे परिवार ने संतोषी माता का विधिवत पूजन शुरू कर दिया और अनंत सुख प्राप्त किया|
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