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धर्म-अध्यात्म
30 अप्रैल को है संकष्टी चतुर्थी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
Apurva Srivastav
29 April 2021 6:11 PM GMT
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हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।
30 अप्रैल को संकष्टी चतुर्थी व्रत है। हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्रमा उदय होने पर व्रत समाप्त किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ, संकट चौथ, वक्रतुंडी चतुर्थी, विकट संकट चौथ आदि नाम से जाने जाने वाली इस चतुर्थी पर श्री गणेश का पूजन किया जाता है। आइए पढ़ें पूजन विधि, शुभ मुहूर्त-
गणेश चतुर्थी की पूजन विधि :-
* श्री चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर प्रतिदिन के कर्मों से निवृ होकर स्नान करें।
* फिर एक पटिए पर लाल कपड़ा बिछाकर गणपति की स्थापना के बाद इस तरह पूजन करें-
* सबसे पहले घी का दीपक जलाएं। इसके बाद पूजा का संकल्प लें।
* फिर गणेश जी का ध्यान करने के बाद उनका आह्वान करें।
* इसके बाद गणेश को स्नान कराएं। सबसे पहले जल से, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) और पुन: शुद्ध जल से स्नान कराएं।
* गणेश के मंत्र व चालीसा और स्तोत्र आदि का वाचन करें।
* अब गणेश जी को वस्त्र चढ़ाएं। अगर वस्त्र नहीं हैं तो आप उन्हें एक नाड़ा भी अर्पित कर सकते हैं।
* इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर, चंदन, फूल और फूलों की माला अर्पित करें।
* अब बप्पा को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखाएं।
* अब एक दूसरा दीपक जलाकर गणपति की प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें।
* हाथ पोंछने के लिए नए कपड़े का इस्तेमाल करें।
* अब नैवेद्य चढ़ाएं। नैवेद्य में मोदक, मिठाई, गुड़ और फल शामिल करें।
* इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिण प्रदान करें।
* सकंष्टी/ सकट चतुर्थी की कथा श्रवण करें अथवा पढ़ें।
* अब अपने परिवार के साथ गणपति की आरती करें। गणेश जी की आरती कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक या तीन या इससे अधिक बत्तियां बनाकर की जाती है।
* इसके बाद हाथों में फूल लेकर गणपति के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करें।
* अब गणपति की परिक्रमा करें। ध्यान रहे कि गणपति की परिक्रमा एक बार ही की जाती है।
* इसके बाद गणपति से किसी भी तरह की भूल-चूक के लिए माफी मांगें।
* पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करें।
* रात को चंद्रमा की पूजा और दर्शन करने के बाद व्रत खोलना चाहिए।
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