धर्म-अध्यात्म

Safla Ekadashi 2021 : इस दिन है साल की आखिरी एकादशी, जानिए व्रत की विधि और महत्व

Rani Sahu
19 Dec 2021 12:48 PM GMT
Safla Ekadashi 2021 :  इस दिन है साल की आखिरी एकादशी, जानिए व्रत की विधि और महत्व
x
सनातन परंपरा में भगवान विष्णु की कृपा दिलाने वाली एकादशी व्रत का बहुत महत्व है

सनातन परंपरा में भगवान विष्णु की कृपा दिलाने वाली एकादशी व्रत का बहुत महत्व है. इस साल पौष मास के कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली एकादशी, जिसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है, उसका व्रत 30 दिसंबर 2022, गुरुवार के दिन पड़ने जा रहा है. इस दिन भगवान विष्णु के साधक उनके लिए विधि-विधान से व्रत रखते हुए सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना करते हैं. मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत रखने पर साधक के सभी प्रयास सफल और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

सफला एकादशी व्रत का पौराणिक महत्व
सभी प्रकार के पाप, दु:ख और दुर्भाग्य से मुक्ति दिलाने वाले सफला एकादशी का व्रत महाभारत काल में युधिष्ठिर ने भी किया था. मान्यता है कि इस व्रत के महात्मय के बारे में युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं बताया था. मान्यता है कि विधि-विधान और श्रद्धा, विश्वास के साथ एकादशी का व्रत करने पर भगवान विष्णु शीघ्र ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
सफला एकादशी व्रत की पूजन विधि
साल भर में पड़ने वाली 24 एकादशी में से एक सफला एकादशी के व्रत को सफल बनाने के लिए व्रत की पूजा करने से पहले पानी में एक चुटकी डालकर स्नान करना चाहिए. पीले रंग के वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु की पीले फूल, फल और पीले चंदन से पूजा करनी चाहिए. सफला एकादशी व्रत वाले दिन भगवान विष्णु को पहले गाय के दूध से फिर शंख में गंगाजल भर कर स्नान कराना चाहिए. इसके बाद श्री हरि को पीले रंग के कपड़े पहनाना चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु को धूप, दीप, आदि दिखाकर तुलसी मिला पंचामृत जरूर अर्पित करें. व्रत वाले दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करें.
सफला एकादशी व्रत की कथा
मान्यता है कि प्राचीनकाल में चंपावती नामक नगरी में एक महिष्मान नामक का राजा हुआ करता था. उसके चार पुत्रों से सबसे बड़ा लुंपक नाम का पुत्र बहुत ही पापी व्यक्ति था. वह अक्सर अधार्मिक कार्यों में लिप्त रहता और देवी-देवताओं की निंदा किया करता था. एक दिन राजा महिष्मान ने लुंपक के गलत कार्यों से परेशान होकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया. इकसे बाद लुंपक जंगलों में जाकर पशुओं के मांस व फल आदि को खाकर जीवन निर्वाह करने लगा. मान्यता है कि एक बार वह पौष माह के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि पर कड़कड़ाती ठंड के कारण मूर्छित सा हो गया और दूसरे दिन जब सफला एकादशी वाले दिन दोपहर को उसको होश आया तो भूख मिटाने के लिए लुंपक ने आस-पास के पेड़ों से गिरे कुछ फल को इकट्ठा करने के लिए चला गया और जब वह फलों को इकट्ठा करके पीपल के पेड़ के नीचे पहुंचा तो उसने अनजाने में ही उन फलों को पीपल के पेड़ के नीचे रखकर भगवान विष्णु से निवेदन किया कि 'इन फलों से भगवान विष्णु संतुष्ट हों'. अनजाने में लुम्पक द्वारा कही गई इस बात से भगवान विष्णु की कृपा दिलाने वाली सफला एकादशी का व्रत संपन्न हो गया. जिसके बाद भगवान विष्णु की कृपा से लुंपक को राज्य, धन, संपत्ति, समेत सभी प्रकार के सुख प्राप्त हुए.
Next Story