धर्म-अध्यात्म

विवाह संबंधी हर समस्या का निवारण होगा श्रावण सोमवार का उपाय

Tara Tandi
20 Jun 2023 12:38 PM GMT
विवाह संबंधी हर समस्या का निवारण होगा श्रावण सोमवार का उपाय
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हिंदू धर्म में वैसे तो हर महीने को महत्वपूर्ण बताया गया हैं लेकिन सावन का महीना बेहद खास माना जाता हैं जो कि भगवान शिव ​को समर्पित होता हैं। श्रावण मास को शिव साधना के लिए उत्तम बताया गया हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय महीना हैं ऐसे में इस दौरान शिव पूजा करने से भगवान जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और शीघ्र फल भी प्रदान करते हैं। श्रावण मास के दिनों में पड़ने वाले सोमवार को भी खास बताया गया हैं।
सावन सोमवार के दिन भक्त उपवास रखकर भगवान की विधिवत पूजा करते हैं सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ऐसे में अगर आप विवाह संबंधी किसी समस्या से जूझ रहे हैं जैसे आपके विवाह में कोई बाधा आ रही हैं, मनचाहा वर नहीं मिल रहा है या फिर आयु बढ़ती जा रही हैं लेकिन शादी नहीं हो पा रही हैं तो ऐसे में आप सावन के महीने में पड़ने वाले सभी सोमवार के दिन उपवास रखकर भगवान ​शिव की विधिवत पूजा करें शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करें और श्री गंगाधर स्तोत्र का पाठ भगवान की प्रतिमा के समक्ष करें मान्यता है कि इस उपाय को पूरे सावनभर अगर किया जाए तो साधक की हर परेशानी दूर हो जाती हैं साथ ही शीघ्र विवाह के योग बनने लगते हैं।
श्री गंगाधर स्तोत्र
क्षीरांभोनिधिमन्थनोद्भवविषा-त्सन्दह्यमानान् सुरान्
ब्रह्मादीनवलोक्य यः करुणया हालाहलाख्यं विषम् ।
निश्शङ्कं निजलीलया कबलयन्लोकान्ररक्षादरा-
दार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ १ ॥
क्षीरं स्वादु निपीय मातुलगृहे भुक्त्वा स्वकीयं गृहं
क्षीरालाभवशेन खिन्नमनसे घोरं तपः कुर्वते ।
कारुण्यादुपमन्यवे निरवधिं क्षीरांबुधिं दत्तवा-
नार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ २ ॥
मृत्युं वक्षसि ताडयन्निजपदध्यानैकभक्तं मुनिं
मार्कण्डेयमपालयत्करुणया लिङ्गाद्विनिर्गत्य यः ।
नेत्रांभोजसमर्पणेन हरयेऽभीष्टं रथाङ्गं ददौ
आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ३ ॥
ओढुं द्रोणजयद्रथादिरथिकैस्सैन्यं महत्कौरवं
दृष्ट्वा कृष्णसहायवन्तमपि तं भीतं प्रपन्नार्तिहा ।
पार्थं रक्षितवानमोघविषयं दिव्यास्त्रमुद्बोधय-
न्नार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ४ ॥
बालं शैवकुलोद्भवं परिहसत्स्वज्ञातिपक्षाकुलं
खिद्यन्तं तव मूर्ध्नि पुष्पनिचयं दातुं समुद्यत्करम् ।
दृष्ट्वानम्य विरिञ्चि रम्यनगरे पूजां त्वदीयां भज-
न्नार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ५ ॥
सन्त्रस्तेषु पुरा सुरासुरभयादिन्द्रादिबृन्दारके-
ष्वारूढो धरणीरथं श्रुतिहयं कृत्वा मुरारिं शरम् ।
रक्षन्यः कृपया समस्तविबुधान् जीत्वा पुरारीन् क्षणा-
दार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ६ ॥
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