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धर्म-अध्यात्म
भाद्रपद्र कुशोत्पाटिनी अमावस्या व्रत में किये जाने वाले धार्मिक कर्म, जानिये
Admin4
4 Sep 2021 1:54 PM GMT
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भाद्रपद अमावस्या का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. इस अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिए कुशा एकत्रित की जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली कुशा यदि इस दिन एकत्रित की जाए तो वह पुण्य फलदायी होती है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- हिन्दू धर्म में अमावस्या की तिथि पितरों की शांति, दान-पुण्य और काल-सर्प दोष निवारण के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है. चूंकि भाद्रपद माह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है, इसलिए भाद्रपद अमावस्या का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. इस अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिए कुशा एकत्रित की जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली कुशा यदि इस दिन एकत्रित की जाए तो वह पुण्य फलदायी होती है.
अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है. इसका वैज्ञानिक नाम Eragrostis Cynosuroides है. इसे कांस अथवा ढाब भी कहते हैं. जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्व से युक्त है. अत्यंत पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है. इसके सिरे नुकीले होते हैं. इसको उखाड़ते समय सावधानी रखनी पड़ती है कि यह जड़ सहित उखड़े और हाथ भी न कटे.
इस वर्ष कुशोत्पाटिनी अमावस्या सोमवार, 6 सितंबर को पड़ रही है. कुशोत्पाटिनी अमावस्या मुख्यत: पूर्वान्ह में मानी जाती है. कुशोत्पाटिनी अमावस्या को पिठौरी अमावस्या और कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है.
भाद्रपद्र कुशोत्पाटिनी अमावस्या व्रत में किए जाने वाले धार्मिक कर्म
स्नान, दान और तर्पण के लिए अमावस्या की तिथि का अधिक महत्व होता है. भाद्रपद कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन किए जाने वाले धार्मिक कार्य इस प्रकार हैं. इस दिन प्रातःकाल उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद बहते जल में तिल प्रवाहित करें. नदी के तट पर पितरों की आत्म शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें. इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है.
अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों का स्मरण करें. पीपल की सात परिक्रमा लगाएं. अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है. इसलिए इस दिन भगवान शनिदेव की पूजा करने के भी बहुत लाभ हैं.
भाद्रपद अमावस्या का महत्व
हर माह में आने वाली अमावस्या की तिथि का अपना विशेष महत्व होता है. हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है. भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है. वहीं पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है. यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है. किसी भी पूजन के अवसर पर पुरोहित यजमान को अनामिका उंगली में कुश की बनी पवित्री पहनाते हैं.
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