धर्म-अध्यात्म

सुख-शांति पाने के लिए हर दिन करें तुलसी स्तोत्र का पाठ, जानें नियम

Subhi
26 Dec 2022 3:15 AM GMT
सुख-शांति पाने के लिए हर दिन करें तुलसी स्तोत्र का पाठ, जानें नियम
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हिन्दू धर्म ग्रंथों में बहुत से ऐसे पाठ, स्तुतियों और मन्त्रों का विस्तृत उल्लेख मिलता है. जिनको यदि व्यक्ति अपने जीवन में उतार लें तो जीवन की सभी परेशानियों से निजात पा सकता है. उन्हीं में से एक है तुलसी स्तोत्रम का पाठ. वैसे तो घर की सुख-समृद्धि के लिए तुलसी स्तोत्रम का पाठ हर दिन प्रातः काल किया जा सकता है लेकिन गुरुवार के दिन तुलसी स्तोत्रम (Shri Tulsi Stotram) का पाठ करने से भगवान श्री हरी विष्णु का भी आशीर्वाद मिलता है.

भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय हैं. इसलिए गुरूवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी जरूर अर्पित करें और तुलसी स्तोत्रम का पाठ करें. इसका पाठ करने की विधि भोपाल के रहने वाले पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा, ज्योतिष से जानेंगे.

इस तरह करें तुलसी स्तोत्रम का पाठ

सुबह जल्दी उठ कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं और साफ वस्त्र धारण कर लें.

अब अपने घर में जहां तुलसी रखी हो वहां भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र रख कर उनके सामने आसन लगा कर बैठ जाएं.

यदि तुलसी नहीं है तो घर के मंदिर में भगवान विष्णु के सामने आसन लगा कर बैठ जाएं.

भगवान को जल छिड़क कर स्नान कराएं, विधि-विधान से पूजा करें.

उसके बाद धूप और गाय के घी का दीपक जलाएं.

अब तुलसी स्तोत्रम का पाठ करें.

पाठ पूरा होने के बाद आरती करें और मां तुलसी और भगवान विष्णु को भोग लगाएं.

इस भोग को घर के सभी सदस्यों में प्रसाद के रूप में वितरण करें.

श्री तुलसी स्तोत्रम्‌

जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे ।

यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥१॥

नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे ।

नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥२॥

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।

कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥३॥

नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।

यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥४॥

तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।

या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥५॥

नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ ।

कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥६॥

तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।

यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥७॥

तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।

आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥८॥

तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।

अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥९॥

नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।

पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥१०॥

इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।

विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥११॥

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनःप्रिया ॥२॥

लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।

षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥१३॥

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।

तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥१४॥

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।

नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥१५॥

॥ श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥


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