धर्म-अध्यात्म

गुरुवार को करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ

1 Feb 2024 5:20 AM GMT
गुरुवार को करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ
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ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा अर्चना को समर्पित होता हैं वही गुरुवार का दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा के लिए विशेष माना जाता है इस दिन भगवान की विधि विधान से पूजा करना उत्तम होता है। भक्त आज के दिन प्रभु …

ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा अर्चना को समर्पित होता हैं वही गुरुवार का दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा के लिए विशेष माना जाता है इस दिन भगवान की विधि विधान से पूजा करना उत्तम होता है।

भक्त आज के दिन प्रभु की भक्ति में लीन रहकर उपवास करते हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर आज के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु के प्रिय और चमत्कारी स्तोत्र दशावतार स्तोत्र का सच्चे मन से पाठ किया जाए तो जीवन की सारी परेशानियों का समाधान हो जाता है और प्रभु के आशीर्वाद से सुख समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं दशावतार स्तोत्र का संपूर्ण पाठ।

यहां पढ़े दशावतार स्तोत्र—

श्री दशावतार स्तोत्र: प्रलय पयोधि-जले
प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम ।
विहितवहित्रचरित्रम खेदम ।
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ॥1॥

क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे ।
धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ।
केशव धृतकच्छपरुप जय जगदीश हरे ॥2॥

वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना ।
शशिनि कलंकलेव निमग्ना ।
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ॥3॥

तव करकमलवरे नखमद्भुतश्रृंगम ।
दलितहिरण्यकशिपुतनुभृगंम ।
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ॥4॥

छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन ।
पदनखनीरजनितजनपावन ।
केशव धृतवामनरुप जय जगदीश हरे ॥5॥

क्षत्रिययरुधिरमये जगदपगतपापम ।
सनपयसि पयसि शमितभवतापम ।
केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे ॥6॥

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम ।
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम ।
केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे ॥7॥

वहसि वपुषे विशदे वसनं जलदाभम ।
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम ।
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ॥8॥

निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम ।
सदयहृदयदर्शितपशुघातम ।
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ॥9॥

म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम ।
धूमकेतुमिव किमपि करालम ।
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ॥10॥

श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम ।
श्रृणु सुखदं शुभदं भवसारम ।
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ॥11॥

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