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धर्म-अध्यात्म
मासिक दुर्गाष्टमी पर करें सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र का पाठ, मिलेगा व्रत का पूर्ण फल
Apurva Srivastav
13 May 2024 9:28 AM GMT
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नई दिल्ली : हिंदू धर्म में मासिक दुर्गाष्टमी का पर्व बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। यह देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। इस महीने यह पर्व शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि यानी 15 मई, 2024 को मनाया जाएगा। इस दिन साधक मां जगदंबा के लिए कठिन व्रत का पालन करते हैं और उनके मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस दिन का उपवास रखते हैं, उन्हें दुर्गासप्तशती का पाठ अवश्य करना चाहिए।
लेकिन किसी वजह से वो ऐसा कर पाने में असमर्थ हैं, तो उन्हें सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र (Siddh Kunjika Stotram) का पाठ करना चाहिए, जो बहुत ही कल्याणकारी माना गया है, तो आइए यहां करते हैं -
॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥
॥शिव उवाच॥
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥
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Apurva Srivastav
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