धर्म-अध्यात्म

सर्वपितृ अमावस्या पर करें पितृ कवच, स्त्रोत और सूक्त का पाठ

Subhi
24 Sep 2022 6:10 AM GMT
सर्वपितृ अमावस्या पर करें पितृ कवच, स्त्रोत और सूक्त का पाठ
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सर्वपितृ अमावस्या इस साल 25 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु की तिथि याद नहीं होती है या फिर तिथि वाले दिन किसी कारण वश श्राद्ध न कर पाए हो।

सर्वपितृ अमावस्या इस साल 25 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु की तिथि याद नहीं होती है या फिर तिथि वाले दिन किसी कारण वश श्राद्ध न कर पाए हो। पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध बेहद जरूरी माना जाता है। 16 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होते हैं।

अगर आपकी कुंडली में पितृ दोष लगा है या फिर अपने पितरों को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करने के अलावा पितृ कवच, पितृ सूक्त और पितृ स्तोत्र का पाठ करें। इससे आपको अवश्य लाभ मिलेगा।

पितृदोष से निजात पाने के लिए ऐसे करें पाठ

अगर आप कुंडली में मौजूद पितृ दोष से निजात पाना चाहते हैं, सर्वपितृ अमावस्या या साल में पड़ने वाली अन्य अमावस्या के दिन इन पितृ कवच, स्त्रोत और सूक्त का पाठ कर सकते हैं। इनका पाठ करने के लिए शाम के समय स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद घर की दक्षिण दिशा बैठकर एक लोटे में जल लें और उसमें थोड़ा सा तिल डालकर लें। इसके बाद पितरों को याद करके पाठ आरंभ करें। अंत में भूल चूक के लिए माफी मांगे और जल को पीपल में चढ़ा दें।

पितृ कवच ( Pitra Kavach)

कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि॥

पितृ स्त्रोत Pitru Stotra

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।

तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।

द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि:।।

प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।

तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।

नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज:।

पितृ सूक्त ( Pitru Suktam)

उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमा: पितर: सोम्यास:।

असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोsवन्तु पितरो हवेषु ।।

अंगिरसो न: पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगव: सोम्यास:।

तेषां वयँ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम ।।

ये न: पूर्वे पितर: सोम्यासोsनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठा:।

तोभिर्यम: सँ रराणो हवीँ ष्युशन्नुशद्भि: प्रतिकाममत्तु ।।

त्वँ सोम प्र चिकितो मनीषा त्वँ रजिष्ठमनु नेषि पन्थाम् ।

तव प्रणीती पितरो न इन्दो देवेषु रत्नमभजन्त धीरा: ।।

त्वया हि न: पितर: सोम पूर्वे कर्माणि चकु: पवमान धीरा:।

वन्वन्नवात: परिधी१ँरपोर्णु वीरेभिरश्वैर्मघवा भवा न: ।।

त्वँ सोम पितृभि: संविदानोsनु द्यावापृथिवी आ ततन्थ।

तस्मै त इन्दो हविषा विधेम वयँ स्याम पतयो रयीणाम।।

बर्हिषद: पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।

त आ गतावसा शन्तमेनाथा न: शं योररपो दधात।।

आsहं पितृन्सुविदत्रा२ अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णो:।

बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पितृवस्त इहागमिष्ठा:।।

उपहूता: पितर: सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।

त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेsवन्त्वस्मान् ।।

आ यन्तु न: पितर: सोम्यासोsग्निष्वात्ता: पथिभिर्देवयानै:।

अस्मिनन् यज्ञे स्वधया मदन्तोsधि ब्रुवन्तु तेsवन्त्वस्मान्।।

अग्निष्वात्ता: पितर एह गच्छत सद: सद: सदत सुप्रणीतय:।

अत्ता हवीँ षि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिँ सर्ववीरं दधातन ।।

ये अग्निष्वात्ता ये अनग्निष्वात्ता मध्ये दिव: स्वधया मादयन्ते ।

तेभ्य: स्वराडसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयाति ।।

अग्निष्वात्तानृतुमतो हवामहे नाराशँ से सोमपीथं य आशु:।

ते नो विप्रास: सुहवा भवन्तु वयँ स्याम पतयो रयीणाम् ।।

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।

मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।

पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥

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