धर्म-अध्यात्म

संकष्टी चतुर्थी पर करें गणेश संकटनाशन स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे सभी संकट

Subhi
22 Dec 2021 3:48 AM GMT
संकष्टी चतुर्थी पर करें गणेश संकटनाशन स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे सभी संकट
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पौष माह की संकष्टी चतुर्थी का व्रत है। इस दिन भगवान गणेश के पूजन का विधान है। इस बार गणेश चतुर्थी बुधवार के दिन पड़ रही है। सनातन धर्म की मान्यता के अनुरूप बुधवार का दिन भी विशेष रूप से भगवान गणेश को समर्पित होता है।

पौष माह की संकष्टी चतुर्थी का व्रत है। इस दिन भगवान गणेश के पूजन का विधान है। इस बार गणेश चतुर्थी बुधवार के दिन पड़ रही है। सनातन धर्म की मान्यता के अनुरूप बुधवार का दिन भी विशेष रूप से भगवान गणेश को समर्पित होता है। इसलिए इस बार की गणेश चतुर्थी का पूजन विशेष फलदायी है। इसके साथ ही इस दिन पुष्य नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है। पुष्य नक्षत्र को ज्योतिषशास्त्र में बहुत ही शुभ माना गया है। इस नक्षत्र में कोई भी शुभ कार्य करना हमेशा लाभ प्रद होता है।

संकष्टी चतुर्थी,अपने नाम के अनुरूप संकट और कष्ट हरने वाली है। जिन लोगों के जीवन में किसी प्रकार की बाधांए या संकट हो इस दिन पूजन में गणेश संकटनाशन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान गणेश आपके सभी कष्ट और संकट दूर करते हैं।
गणेश संकटनाशन स्तोत्र का पाठ
भगवान गणेश के इस संकटनाशन स्तोत्र का वर्णन नारद पुराण में मिलता है। संकटनाशन स्तोत्र दुख और सकंट हरने का अचूक उपाय माना जाता है। संकष्टी चतुर्थी का दिन गणेश पूजन और इस स्तोत्र के पाठ के लिए सबसे उपयुक्त है। इस दिन पूजन में लाल या पीले रंग के वस्त्र पहने। गणेश जी को दूर्वा और मोदक का भोग लगाना न भूलें। गौरीपुत्र भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है और जीवन के सभी दुख दूर होते हैं।
गणेश संकटनाशन स्तोत्र

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।

भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।

तृतीयंकृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रंचतुर्थकम।।2।।

लम्बोदरं पंचमंच षष्ठं विकटमेव च।

सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णतथाष्टकम्।।3।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तुविनायकम।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तुगजाननम।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।

विद्यार्थी लभतेविद्यांधनार्थी लभतेधनम्।

पुत्रार्थी लभतेपुत्रान्मोक्षार्थी लभतेगतिम्।।6।।

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलंलभेत्।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभतेनात्र संशय: ।।7।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।

तस्य विद्या भवेत्सर्वागणेशस्य प्रसादत:।।8।। ॥


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