धर्म-अध्यात्म

मासिक दुर्गाष्टमी पर करें दुर्गा स्तुति का पाठ, पूरी होगी हर मनोकामना

Subhi
6 July 2022 3:28 AM GMT
मासिक दुर्गाष्टमी पर करें दुर्गा स्तुति का पाठ, पूरी होगी हर मनोकामना
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आषाढ़ माह के गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। हिंदू धर्म में इसका बेहद खास महत्व होता है। वहीं इस बार आषाढ़ माह की मासिक दुर्गाष्टमी भी बेहद खास है, क्योंकि ये गुप्त नवरात्रि में पड़ रही है।

आषाढ़ माह के गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। हिंदू धर्म में इसका बेहद खास महत्व होता है। वहीं इस बार आषाढ़ माह की मासिक दुर्गाष्टमी भी बेहद खास है, क्योंकि ये गुप्त नवरात्रि में पड़ रही है। सबसे खास बात ये है कि इस दिन आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की दुर्गाष्टमी भी है। इस दिन मां दूर्गा के महागौरी स्वरूप की आराधना करते हैं। आषाढ़ माह कि मासिक दुर्गाष्टमी 07 जुलाई, दिन गुरुवार को है। मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह की मासिक दुर्गाष्टमी का भी बहुत ज्यादा महत्व है। ऐसे में इस दिन मां दुर्गा की पूजा के साथ दुर्गा स्तुति का पाठ करना शुभ माना जाता है। आइए पढ़ते हैं संपूर्ण दुर्गा स्तुति यहां....

दुर्गा स्तुति

दुर्गे विश्वमपि प्रसीद परमे सृष्ट्यादिकार्यत्रये

ब्रम्हाद्याः पुरुषास्त्रयो निजगुणैस्त्वत्स्वेच्छया कल्पिताः ।

नो ते कोऽपि च कल्पकोऽत्र भुवने विद्येत मातर्यतः

कः शक्तः परिवर्णितुं तव गुणॉंल्लोके भवेद्दुर्गमान् ॥ १ ॥

त्वामाराध्य हरिर्निहत्य समरे दैत्यान् रणे दुर्जयान्

त्रैलोक्यं परिपाति शम्भुरपि ते धृत्वा पदं वक्षसि ।

त्रैलोक्यक्षयकारकं समपिबद्यत्कालकूटं विषं

किं ते वा चरितं वयं त्रिजगतां ब्रूमः परित्र्यम्बिके ॥ २ ॥

या पुंसः परमस्य देहिन इह स्वीयैर्गुणैर्मायया

देहाख्यापि चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्तिः परा ।

त्वन्मायापरिमोहितास्तनुभृतो यामेव देहास्थिता

भेदज्ञानवशाद्वदन्ति पुरुषं तस्यै नमस्तेऽम्बिके ॥ ३ ॥

स्त्रीपुंस्त्वप्रमुखैरुपाधिनिचयैर्हीनं परं ब्रह्म यत्

त्वत्तो या प्रथमं बभूव जगतां सृष्टौ सिसृक्षा स्वयम् ।

सा शक्तिः परमाऽपि यच्च समभून्मूर्तिद्वयं शक्तित-

स्त्वन्मायामयमेव तेन हि परं ब्रह्मापि शक्त्यात्मकम् ॥ ४ ॥

तोयोत्थं करकादिकं जलमयं दृष्ट्वा यथा निश्चय-

स्तोयत्वेन भवेद्ग्रहोऽप्यभिमतां तथ्यं तथैव ध्रुवम् ।

ब्रह्मोत्थं सकलं विलोक्य मनसा शक्त्यात्मकं ब्रह्म त-

च्छक्तित्वेन विनिश्चितः पुरुषधीः पारं परा ब्रह्मणि ॥ ५ ॥

षट्चक्रेषु लसन्ति ये तनुमतां ब्रह्मादयः षट्शिवा-

स्ते प्रेता भवदाश्रयाच्च परमेशत्वं समायान्ति हि ।

तस्मादीश्वरता शिवे नहि शिवे त्वय्येव विश्वाम्बिके

त्वं देवि त्रिदशैकवन्दितपदे दुर्गे प्रसीदस्व नः ॥ ६ ॥

॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे वेदैः कृता दुर्गास्तुतिः सम्पूर्णा ॥


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