धर्म-अध्यात्म

मंगलवार के दिन इन नियमों से करें बजरंग बाण का पाठ

Tara Tandi
19 March 2024 10:56 AM GMT
मंगलवार के दिन इन नियमों से करें बजरंग बाण का पाठ
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ज्योतिष न्यूज़ : सप्ताह में पड़ने वाला मंगलवार हनुमान पूजा को समर्पित होता है इस दिन भक्त भगवान हनुमान की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं माना जाता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से लाभ मिलता है। भक्त बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करते हैं
ऐसे में अगर आप इस दौरान कुछ नियमों का पालन करते हैं तो हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होकर सुख समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद प्रदान करते हैं तो आज हम आपको बता रहे हैं कि बजरंगबाण का पाठ करते वक्त किन नियमों का पालन करना जरूरी होता है, तो आइए जानते हैं।
बजरंगबाण के दौरान करें इन नियमों का पालन—
बजरंग बाण का पाठ करने के लिए सप्ताह के मंगलवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान ध्यान करें। इसके बाद हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कर अब कुश के आसान पर बैठकर बजरंग बाण का पाठ का संकल्प करें। इसके बाद हनुमान जी को धूप, दीपक और पुष्प अर्पित कर प्रभु की विधिवत पूजा करें अब जितनी बार बजरंग बाण पाठ का संकल्प किया है उतनी बार रुद्राक्ष की माला से उसका पाठ करें। बजरंग बाण का पाठ करते वक्त उच्चारण पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए। इस दौरान प्रसाद के तौर पर हनुमान जी को चूरमा, लड्डू और फल अर्पित करें।
बजरंग बाण पाठ—
" दोहा "
"निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।"
"तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥"
"चौपाई"
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।
बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।
अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई।।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।
जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।
ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिं मारु बज्र की कीले।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।
ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।
वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।
जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।
चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।
ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब काँपै।।
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।
"दोहा"
" प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान। "
" तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।। "
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