धर्म-अध्यात्म

हर मंगलवार को करें बजरंगबाण का पाठ, कुण्डली से मंगलदोष होगा दूर

Subhi
21 Dec 2021 2:28 AM GMT
हर मंगलवार को करें बजरंगबाण का पाठ, कुण्डली से मंगलदोष होगा दूर
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मंगलवार का दिन मंगलकर्ता हनुमान जी को समर्पित होता है। प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हनुमान जी संकटहारी और मगंलकारी देव माने जाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हनुमान जी ही मंगल ग्रह के कारक देव हैं।

मंगलवार का दिन मंगलकर्ता हनुमान जी को समर्पित होता है। प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हनुमान जी संकटहारी और मगंलकारी देव माने जाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हनुमान जी ही मंगल ग्रह के कारक देव हैं। मंगलवार के दिन हनुमान जी का पूजन करने से मंगल दोष से मुक्ति मिलती है। जिन लोगों की कुण्डली में मंगल ग्रह कमजोर स्थिति में हो। उन्हें मंगलवार के दिन किसी भी हनुमान मंदिर में जाकर चमेली के तेल का दिया जलाना चाहिए। हनुमान जी को घी और सिंदूर को लेप अर्पित कर बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए। नियमित रूप से हर मंगलवार को ऐसा करने से मंगल दोष समाप्त होता है। हनुमान जी के आशीर्वाद से सभी कष्ट और संकट भी दूर होते हैं।

श्री बजरंग बाण का पाठ

दोहा :

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैंसनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैंहनुमान॥

चौपाई :

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजैप्रभुअरज हमारी॥

जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसेकूदि सिंधुमहिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥

आगेजाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

बाग उजारि सिंधुमहँबोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥

जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जैहनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥

ॐ हनुहनुहनुहनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनुअरि उर सीसा॥

जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥

भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हेंमारु, तोहि सपथ राम की। राखुनाथ मरजाद नाम की॥

सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृहगृ माहीं। तुम्हरेबल हौं डरपत नाहीं॥

जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जैजैजैधुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥

चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँपरौं, कर जोरि मनाई॥

ॐ चंचंचंचंचपल चलंता। ॐ हनुहनुहनुहनुहनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ संसंसहमि परानेखल-दल॥

अपनेजन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥

पाठ करैबजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करैप्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥

धूप देय जो जपैहमेसा। ताके तन नहिं रहैकलेसा॥

दोहा :

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करैधरि ध्यान।

बाधा सब हर, करैंसब काम सफल हनुमान॥


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