- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- उत्पन्ना एकादशी के दिन...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | एक बार सूतजी कहने लगे, 'हे ऋषियों! एकादशी व्रत का वृत्तांत और उत्पत्ति प्राचीनकाल में श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बतलाई थी। यही मैं तुम्हें भी बतात हूं। एक बार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से इस व्रत की विधि और उसका फल पूछा था। तब श्री कृष्ण ने कहा- हे युधिष्ठिर! मैं तुमसे एकादशी के व्रत का माहात्म्य कहता हूं।
हेमंत ऋतु में आने वाले मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी से इस व्रत की शुरुआत की जाती है। दशमी तिथि को शाम के समय अच्छे से दातून करें। इससे मुंह में अन्न का एक भी दाना नहीं रहा जाता है। दशमी तिथि को दातुन न करें। फिर एकादशी के दिन सुबह 4 बजे उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। फिर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर साफ जल से स्नान करें। इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान की पूजा करें। फिर रात के समय दीपदान करें। रात्रि में सोना या प्रसंग नहीं करना चाहिए। पूरी रात भजन-कीर्तन करना चाहिए।
विधि-विधान के साथ अगर पूजा की जाए तो व्यक्ति को वही फल प्राप्त होता है जो शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से प्राप्त सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं है। इस दिन एगर दान किया जाए तो व्यक्ति को लाख गुना फल प्राप्त होता है। कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से संक्रांति से चार लाख गुना तथा सूर्य-चंद्र ग्रहण में स्नान-दान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत का प्रभाव देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इस व्रत का फल हजार यज्ञों से भी ज्यादा होता है।
फिर युधिष्ठिर ने पूछा कि हे भगवान! हजारों यज्ञ और लाख गौदान के फल को भी एकादशी के बराबर नहीं बताया है। ऐसे में यह तिथि सबसे उत्तम कैसे हुई। तब श्री कृष्ण ने कहा, हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ था। वह बेहद ही भयानक और बलवान था। मुर राक्षस ने सभी देवों को उनके स्थान से निकाल दिया था और स्वर्ग पर भी आधिपत्य स्थापित कर लिया था। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा।
भगवान शिव ने कहा कि उन्हें विष्णु जी की शरण में जाना होगा। वे तीनों लोकों के स्वामी हैं। सभी दुखों का नाश करने वाले हैं। वे तुम्हारा दुख दूर कर सकते हैं। यह सुन सभी देवतागण क्षीरसागर में पहुंचे। वहां, सभी ने विष्णु जी को सोता देख उनकी स्तुति की। उन्होंने कहा कि हे मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें।
देवताओं ने विष्णु जी से कहा कि इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता आप ही हैं। आकाश पाताल भी आप हैं। हे भगवन्! दैत्यों ने हम सभी को स्वर्ग से निकाल दिया है। आप हमारी रक्षा करें। यह सुन विष्णु जी ने कहा कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है? तब इंद्रदेव ने कहा कि भगवन! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था। उसका एक पुत्र हुआ जिसका नाम मुर रखा गया। उसने ही इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है।
देवगण की बात सुनकर विष्णु जी ने कहा कि वो उस असुर का संहार करेंगे। विष्णु जी ने मुर दैत्य के साथ युद्ध शुरू किया। यह युद्द कई वर्षों तक चला। लेकिन अंत में विष्णु जी को नींद आने लगी। इसके लिए वो बद्रिकाश्रम में स्थित हेमवती नामक गुफा में गए और वहां विश्राम करने लगे। विष्णु जी के पीछे मुर राक्षस भी पहुंच गया।
मुर राक्षस विष्णु जी को मारने के लिए आगे बढ़ ही रहा था कि विष्णु जी के अंदर से एक कन्या निकली। इस कन्या ने मुर का वध किया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। जब विष्णु जी की नींद टूटी तो वह अचंभित रह गए। तब कन्या ने विष्णु जी को विस्तार से पूरी घटना बताई। सब जानने के बाद विष्णु ने कन्या को वरदान मांगने को कहा। यह कन्या और कोई नहीं देवी एकादशी थीं। उन्होंने भगवान से वरदान मांगा कि जो भी व्यक्ति उनका व्रत करे उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। साथ ही उस व्यक्ति को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। विष्णु भगवान ने उस कन्या को एकादशी का नाम दिया।