धर्म-अध्यात्म

पुत्रदा एकादशी के दिन पढें ये कथा पूर्ण होगी मनोकामना

Teja
13 Jan 2022 6:03 AM GMT
पुत्रदा एकादशी के दिन पढें ये कथा पूर्ण होगी मनोकामना
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आज 13 जनवरी को पुत्रदा एकादशी है. यह एकादशी करने से ना केवल संतान सुख का वरदान प्राप्‍त होता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आज लोहडी का त्‍योहार है और साथ ही पुत्रदा एकादशी भी है. आज के दिन भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है. ऐसी मान्‍यता है कि इस दिन व्रत रखने और व्रत कथा का पाठ करने वाले जातकों से भगवान विष्‍णु जल्‍दी प्रसन्‍न होते हैं और उन्‍हें मनचाहा वरदान देते हैं. यह व्रत करने वाले भक्‍तों को संतान सुख का वरदान प्राप्‍त होता है. इस व्रत को नियमपूर्वक ही करना चाह‍िये. ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत कथा का पाठ ना करने से पूजा अधूरी मानी जाती है. इसलिये आज के दिन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. व्रत कथा सुनने और सुनाने से सुखद फल प्राप्‍त होते हैं.

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय में भद्रावती राज्य का राजा सुकेतुमान था. उसका विवाह शैव्या नाम की राजकुमारी से हुआ था. उसके राज्य में हर प्रकार की सुख, सुविधा और वैभव था. उसकी प्रजा भी खुश थे. विवाह के काफी समय व्यतीत हो जाने के बाद भी सुकेतुमान की कोई संतान नहीं हुई. इस वजह से पति और पत्नी काफी दुखी और चिंतित रहते थे.
राजा सुकेतुमान को इस बात की चिंता थी कि उनका पुत्र नहीं है, तो फिर उनका पिंडदान कौन करेगा. इन सबसे राजा का मन इतना व्यथित हो गया कि वह खुद के ही प्राण लेने की सोचने लगा. हालांकि उसने ऐसा कदम नहीं उठाया. राजकाज से भी उसका मन उचट गया. ऐसे में वह एक दिन वन की ओर प्रस्थान कर गया.
राजा चलते चलते एक तालाब के ​किनारे पहुंच गया. वह दुखी मन से वहां बैठा हुआ था. तभी उसे कुछ दूरी पर एक आश्रम​ दिखाई दिया. वह उस आश्रम में गया. वहां उसने सभी ऋषियों को प्रणाम किया. तब ऋषियों ने उससे इस वन में आने का कारण पूछा. तब राजा ने अपने दुख का कारण बताया. ऋषि ने राजा सुकेतुमान से कहा कि संतान प्राप्ति के लिए उनको पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक रखना होगा. ऋषि ने पुत्रदा एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन किया.
अपनी समस्या का हल पाकर राजा वहां से खुश होकर वापस अपने महल में आ गया. फिर पुत्रदा एकादशी का व्रत आने पर राजा और पत्नी ने व्रत रखा और विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा की. पुत्रदा एकादशी के व्रत नियमों का पालन किया. इसके फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं और फिर राजा को एक पुत्र प्राप्त हुआ. इस प्रकार से जो भी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है.


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