धर्म-अध्यात्म

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए करें इस पावन कथा का पाठ

Gulabi
24 May 2021 2:58 AM GMT
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए करें इस पावन कथा का पाठ
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सोम प्रदोष व्रत आज है. सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित माना जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोम प्रदोष व्रत आज है. सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. भक्त आज भगवान शिव और शिव परिवार की पूजा-अर्चना कर रहे हैं. सोम प्रदोष व्रत करने से पापों का नाश होता है. मनोकामना पूरा होती है और निरोगी काया की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रदेव को पाप के कारन क्षय रोग हो गया था. इस पाप के निवारण हेतु उन्होंने भगवान शिव की पूजा अर्चना की और सोमवार का प्रदोष व्रत किया. कोरोना काल में प्रदोष व्रत की पूजा घर पर ही करें और लॉकडाउन के नियमों का पालन करें. पूजा के बाद कथा का पाठ करने से पूजा पूरी मानी जाती है. आइए पढ़ते हैं सोम प्रदोष व्रत की पावन कथा...

सोम प्रदोष व्रत की कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी. उसके पति का स्वर्गवास हो गया था. उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी.
एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला. ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई. वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था. शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था. राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा.
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार भा गया.
कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. उन्होंने वैसा ही किया.
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी. उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा.
राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं. अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए.


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