- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- शुक्र प्रदोष व्रत की...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आज कार्तिक मास का प्रदोष व्रत है। आज शुक्रवार है और आज के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत किया जाता है। व्रत करते समय प्रदोष व्रत कथा भी पढ़नी चाहिए। आइए पढ़ते हैं प्रदोष व्रत की कथा।
पौराणक मान्यताओं के अनुसार, एक नगर में तीन मित्र रहते थे। इनमें से एक राजुकमार था, दूसरा ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र था। इन तीनों में से राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। शादी तो धनिक पुत्र का भी हो गया था। लेकिन उसकी पत्नी का गौना फिलहाल नहीं हुआ था। एक दिन तीनों ही एक साथ बैठकर अपनी-अपनी पत्नियों की चर्चा कर रहे थए। तभी ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा, 'नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।' जैसे ही धनिक पुत्र ने यह सुना तो उसने अपने पत्नी को मायके से विदा कराने का निश्चय कर लिया।
जब धनिक पुत्र ने अपने माता-पिता से इस बात की चर्चा की तो उसके माता-पिता ने उसे समझाया कि अभी बहू-बेटियों को विदा कराना शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि इस समय शुक्र देवता डूबे हुए हैं। लेकिन यह जानने के बाद भी धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी। वो अपनी जिद्द पर अड़ा रहा और यह देखते हुए कन्या के माता पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद पति-पत्नी शहर से निकल पड़े। जैसे ही वो शहर से निकले उनकी बैलगाड़ी का पहिया निकल गया। बैल की टांग टूट गई। पति-पत्नी दोनों को ही काफी चोट आई।
चोट लगने के बाद भी वो चलते रहे। कुछ दूर ही वो चले थे कि उनका पाला डाकुओं से पड़ा। डाकुओं ने उनका धन लूट लिया। दोनों घर पहुंचे। घर पहुंचने के बाद धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। जब पिता ने वैद्य को बुलाया तो उन्होंने कहा कि वो तीन दिन में मर जाएगा। इस बात की जानकारी ब्राह्मण को मिली। उसने धनिक पुत्र के घर आकर उसके माता-पिता से शुक्र प्रदोष व्रत करने को कहा। साथ ही कहा कि इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। ब्राह्मण कुमार की बात मानकर धनिक को वापस ससुराल भेजा गया और शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से उसकी हालत ठीक होती गई।